Wednesday, June 30, 2010

रफ्तार की रानियां

Speed of the queens
फर्राटे सेे गाडियां दौडाना अब महिलाओं को खूब रास आ रहा है। 19 वर्षीय अलीशा अब्दुल्ला ने जब जेके टायर नेशनल रेसिंग चैंपियनशिप में शिरकत की तो तमाम पुरूष प्रतिभागियों के बीच वह अकेली महिला थीं। कोयंबटूर में आयोजित हुई इस चैंपियनशिप में भाग लेते समय पहले तो अलीशा को पुरूष प्रतिभागियों के मजाक का शिकार होना पडा, लेकिन जैसे ही उन्होंने अपनी 110 सीसी यामाहा क्रक्स दौडानी शुरू की तो लोगों ने दांतों तले अंगुलियां दबा लीं। अलीशा से प्रेरणा लेकर अब तमाम रफ्तार की रानियां ट्रैक पर उतर आई हैं और रफ्तार की सीमाएं तोडते हुए कामयाबी की नई इबारतें लिख रही हैं।

महिमा का जुनून
बाइक रेसिंग में उभरता सितारा हैं- महिमा निझाउनी का। महिमा का सफर 14 साल की उम्र में शुरू हो गया था। वे रॉयल बीस्ट की मेंबर हैं। रॉयल बीस्ट दिल्ली के रॉयल एनफ ील्ड बाइकर्स का समूह है। देश के सभी राष्ट्रीय राजमार्गो को नाप चुकी महिमा कई-कई दिनों तक रफ्तार के साथ बाइक ड्राइव कर सकती हैं। बाइक चलाने के अपने जुनून के चलते महिमा मनाली, राजस्थान, मुंबई, गोवा और ऊटी तक का सफर तय कर चुकी हैं। इसके अलावा महिमा अकेली ऎसी युवती हैं, जिन्होंने हिमालय की गोद में बसे लद्दाख के खारडंग ला और पनगोंग में 2002 में आयोजित मोटरसाइकिल एक्सपेंडीशन में हिस्सा लिया। मात्र तीन दिन में अपनी एनफील्ड बाइक से मुंबई से दिल्ली तक का 1400 किलोमीटर तक का सफर तय करने वाली भी महिमा अकेली महिला हैं। बाइक चलाने के अपने शौक को लेकर महिमा कहती हैं, 'कौन कहता है कि लडकियां भारी-भरकम बाइक नहीं चला सकतीं। यह सिर्फ लोगों की पिछडी सोच और मानसिकता है। इससे बाहर निकलते ही लडकियों का बाइक चलाना आम लगने लगता है।'

वर्तिका का बाइक स्टंट
वर्तिका पांडे रफ्तार की दुनिया की जानी-मानी हस्ती बन चुकी हैं। वह सिर्फ बाइकर ही नहीं, स्टंट बाइकर हैं। बाइक स्टंट करने वाली वह देश की पहली महिला हैं। वर्तिका कहती हैं, 'मैं तो इसका एक आसान-सा फार्मूला जानती हूं, 50 फीसदी पैशन और 50 फीसदी प्रैक्टिकल। इन दोनों को मिलाकर तैयार होता है एक अच्छा बाइकर।
फिर ये दोनों ही चीजें ऎसी नहीं कि महिलाएं इन्हें इस्तेमाल न कर सकें, तो भला बाइक स्टंट को पुरूषों का कार्यक्षेत्र कैसे माना जा सकता है' अपने पिता की पल्सर-150 लेकर सडकों पर फर्राटे से दौड लगाने वाली वर्तिका के जीवन का टर्निग पॉइंट भोपाल के स्टंट टे्रनर से मिलना रहा। उन्हें बाइक स्टंट के लिए प्रोत्साहित करने वाला ट्रेनर ही था और उसी ने वर्तिका को बाइक स्टंट एक खेल की तरह सिखाया। आज वर्तिका के लिए स्टंट बाइकिंग पेशा है, तो जुनून भी।

बुलट से मिलती है खुशी
गौरी लोकरे जब क्लास-4 में थीं, तभी उन्हें यह एहसास होने लगा था कि वह दूसरी लडकियों से अलग हैं। जिस उम्र में लडकियों को गुड्डे-गुडियों से खेलना और झूले झूलना पसंद आता है, गौरी उस उम्र में ही अपने चाचा की स्कूटी के साथ घंटों खेला करती थीं। कॉलेज पहुंचते ही गौरी के पास खुद की स्कूटी आ गई, लेकिन जैसी ही वह 18 साल की हुई, उसने अपने भाई की बुलट ले ली और यहीं से गौरी का बाइक रेसिंग का सफर शुरू हो गया। 2008 में आयोजित होने वाले राइडर मेनिया में हिस्सा लेने वाली अकेली युवती थीं। 60 लडकों के बीच में पुणे से हैदराबाद के बीच 400 किलोमीटर के फासले को तय करने वास्ते गौरी ने लगातार 14 घंटे बाइक चलाई। इसके बाद गौरी ने रेस में हिस्सा लेकर जीत अपने नाम की। रोड शेकर्स की सदस्य गौरी कहती हैं, 'आजादी के एहसास ने मुझे बाइक की तरफ खींचा। अपनी शानदार बुलट में जब मैं रफ्तार पकडती हूं तो चेहरे पर महसूस होने वाला तेज हवा का झोंका अलग ही खुशी देता है।'


किताब के टाइटल में 1086 शब्द!

Book
आम तौर पर किसी पुस्तक का टाइटल कितना बडा होता है अधिकतम 8-10 शब्दों तक। लेकिन अगर आप आंध्र प्रदेश के एक प्रोफेसर की पुस्तक को देखेंगे, तो इसका टाइटल पढने और समझने में ही आपको काफी वक्त लग जाएगा। दरअसल, उन्होंने इस पुस्तक में 1086 शब्दों का प्रयोग किया है, जिसमें 5633 अक्षर हैं। यह टाइटल अंग्रेजी में है और गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉड्र्स ने इसे दुनिया में सबसे लंबे टाइटल वाली किताब के रूप में मान्यता दी है।

आंध्र के महबूबनगर जिले में रहने वाले वंजीपुरम श्रीनाथ चारी को शुरूआत से ही अनोखे काम करने में दिलचस्पी रही है। वे यहां पालामुरू विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। उन्होंने जब अंग्रेजी के 108 मुहावरों, कहावतों, वाक्यांशों और शब्दों के उद्भव और विन्यास पर एक किताब लिखना शुरू किया था, तभी उन्होंने मन में ठान लिया था कि वे इसे दुनिया की असाधारण किताब बना देंगे। किताब की सामग्री तो अद्भुत है ही, साथ ही उन्होंने इसका टाइटल भी अनोखा बना दिया है। इसका टाइटल उन्होंने इतना लंबा रखा कि विश्व रिकॉर्ड बन गया है।

पिछला रिकॉर्ड
चारी की किताब ने अब मिस्त्र के एसाम मशाली का रिकॉर्ड तोड दिया है, जिनकी किताब का टाइटल 301 शब्दों का था। इस टाइटल में 1518 अक्षर इस्तेमाल हुए थे। इस तरह देखा जाए तो चारी ने न केवल यह रिकॉर्ड तोडा, बल्कि उसे बडे अंतर से पीछे छोडा है। चारी के अनुसार गिनीज अधिकारियों ने पिछले महीने इस रिकॉर्ड की पुष्टि कर दी थी, लेकिन अब इसकी आधिकारिक घोषणा की है और गिनीज वल्र्ड रिकॉड्र्स, लंदन द्वारा उपलब्धि का प्रमाण-पत्र जारी किया गया है।

125 पेज की बुक
कुल 125 पृष्ठों वाली उनकी इस अंग्रेजी किताब का प्रकाशन पिछले साल 27 सितम्बर को हुआ था। अपने अनोखे टाइटल की वजह से यह किताब आरंभ से ही लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र रही है। कुछ लोग इसे दिलचस्प मानते हैं, वहीं कुछ लोग ऎसे भी हैं, जो इसे समझ पाने में असमर्थता व्यक्त करते हैं। फिर भी सभी लोग चारी को इस उपलब्धि पर बधाई देते हैं। चारी का कहना है कि नया रिकॉर्ड बनाने के साथ वे इस शाखा में रिकॉर्ड बनाने वाले भारत के पहले असिस्टेंट प्रोफेसर बन गए हैं।


अच्छी बारिश के लिए मेढकों की शादी

Frog married to good rains
अच्छी बारिश के लिए इंद्र देवता को खुश करने के लिए उडीसा में मेढक-मेढकी की शादी कराई गई। केन्द्रपाडा के तिकानपुर गांव और उसके आसपास के क्षेत्रों के किसानों ने इंद्र देवता को खुश करने के लिए मंगलवार को मेढक-मेढकी की शादी रचाई। यह शादी हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार की गई।

शादी को पूरे विधि-विधान से संपन्न कराने के लिए गांव वाले वर पक्ष और वधू पक्ष में बंट गए। मेढक-मेढकी को मंदिर में लाया गया और फिर तिकानपुर के एक बडे मैदान में सैकडों गांव वालों की मौजूदगी में मेढक-मेढकी दाम्पत्य सूत्र में बंध गए। गांव के एक अध्यापक सुरेश चंद्र रोउत (65) ने बताया कि उडिया लोककथा के अनुसार अच्छी बारिश के लिए मेढक-मेढकी की शादी की जाती थी। इस शादी के पहले भी पंडित से सलाह ली गई थी।

गौरतलब है कि बिहार व देश के अन्य हिस्सों में भी अच्छी बारिश के लिए मेढक-मेढकी का विवाह किया जाता है। कई बार तो यह आयोजन इतना आलीशान होता है कि किसी सामान्य विवाह की चमक-दमक को भी पीछे छोड देता है। यह समारोह तीन-चार दिन चलता है और इस दौरान विवाह के सभी रिवाजों को निभाया जाता है। निमंत्रण पत्र छपवाकर बांटने से लेकर विदाई तक सभी रस्में पूरी शिद्दत से निभाई जाती हैं। हालांकि विदाई के बाद मेढक-मेढकी को तालाब में छोड दिया जाता है।







ऎसा गांव, जहां हर घर में हैं नाग

Snake
छत्तीसगढ के रायगढ जिले में एक ऎसा गांव स्थित है, जहां अब तक एक भी ग्रामीण की मौत सर्प दंश से नहीं हुई है। अब इसे आस्था कहें या दोस्ती, ग्रामीण और जहरीले सर्प घर के अंदर एक साथ रहते हैं और दोनों एक-दूसरे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते

रायगढ जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर पुसौर विकासखंड क्षेत्र में स्थित गांव सोडेकेला एक ऎसा 'नागलोक' है, जहां बारिश की बूंदें पडते ही गांव के अंदर ही नहीं, बल्कि हर घर में नाग विचरण करने लगते हैं। रोचक बात यह है कि इस गांव में अब तक एक भी सर्पदंश का गंभीर मामला नहीं देखा गया है। गौरतलब है कि जिले के इस क्षेत्र में सर्वाधिक तौर पर नाग व अन्य जहरीले सर्प पाए जाते हैं। ग्रामीणों के अनुसार यहां कोई भी सांप से नहीं डरता और बच्चे भी उन्हें अपना साथी ही समझते हैं।

ग्रामीणों का मानना है कि इस क्षेत्र में भगवान शिव की विशेष कृपा है। यही कारण है कि आजकल अन्य क्षेत्रों में जहां नाग के दर्शन दुर्लभ हो गए हैं, वहीं इस क्षेत्र में भारी संख्या में नागों का वास है। ग्रामीण इन नागों को अपने इष्ट देव का रूप मानते हैं। बारिश की बूंद के साथ जब ये बाहर निकलते हैं, तो ग्रामीण इनकी पूजा करके इन्हें दूध पिलाते हैं। क्षेत्र के कई ग्रामीण इसे आस्था का प्रतीक मानते हैं तो कई दोस्ताना संबंध।

सपेरों पर है प्रतिबंध
'नागलोक' के नाम से जाने जाने वाले इस गांव में पहले कई बार सपेरों ने सांप पकडने के प्रयास किए, लेकिन ग्रामीणों ने उन्हें गांव से बाहर खदेड दिया। क्षेत्र के लोगों का मानना है कि सपेरे इन सर्पों को पकडकर अपना व्यवसाय करेंगे, जो उन्हें मंजूर नहीं है। क्षेत्र के लोग इन सर्पो को अपना भगवान मानते हैं और उन्हें किसी प्रकार का कष्ट होते नहीं देख सकते।

आस्था का रूप
सोडेकेला निवासी पkलोचन साव का कहना है कि पडोसी गांव में भी भारी मात्रा में नाग और अन्य सर्प थे, लेकिन ग्रामीणों द्वारा नुकसान पहुंचाने से वहां संख्या कम हो गई। हेमसागर साव व पुनीराम सारथी का कहना है कि जिले में इस क्षेत्र में सर्वाधिक सर्प पाए जाते हैं। ग्रामीण इसे आस्था का रूप मानते है और यही कारण है कि वे किसी को नुकसान नही पहुंचाते। अन्य ग्रामीणों का भी कहना है कि दुर्लभ प्रजाति के नाग इस क्षेत्र में मौजूद हैं, जिन्हें वे भगवान शिव का रूप मानते हैं।


कुत्तों के लिए खुला 5 स्टार होटल

क्या आप वीकेंड्स पर बाहर जा रहे हैं और आपके पालतू को घर में अकेला रहना पड़ेगा। अगर हां तो अब आपको चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। ब्रिटेन के वेल्स राज्य में इसका इंतजाम कर लिया गया है। दरअसल यहां पालतू कुत्तों के लिए एक होटल डिजाइन किया गया जहां उन्हें फाइव स्टार ट्रीटमेंट से नवाजा जाएगा।

मेरथ्यर टायडफिल में बने रॉयवॉन पेट होटल में आपके पेट डॉग के लिए खास इंतजाम किए गाए हैं। यहां उन्हें वह सब सुविधाएं दी जाएंगी जो आपको किसी फाइवस्टार होटल में मौहया कराई जाती हैं। इनमें से स्पा, स्वीमिंग पुल सर्विस और प्ले एरिया सबसे खास हैं।

साथ ही आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यहां आपके पेट को अपना बेड, फर्नीचर यहां तक की रूम भी किसी दूसरे पेट के साथ शेयर नहीं करना पड़ेगा।

आपके पेट के आलीशान कमरे में टीवी की सुविधा भी मौहया कराई जाएगी जिसमें वह एनिमल प्लानेट और लैसेस जैसे कार्यक्रमों को मजा उठा पाएंगें।

होटल के एक कर्मचारी के मुताबिक पेट डॉग्स के लिए जो रूम डिजाइन किए गए हैं उन सभी में वह सारी सुविधाएं मौजूद हैं जो किसी इंसानी शानओ-शौकत जैसी ही है। इस होटल में आपके पेट की एक रात गुजारने का खर्चा 29 पाउंड होगा।

Tuesday, June 29, 2010

उसे हर 15 मिनट में चाहिए खाना

क्या आपने किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में सुना है जो हर 15 मिनट में कुछ न कुछ खाता है लेकिन उसका वजन नहीं बढ़ता। टेक्सास स्थित ऑस्टिन में रहने वाली 21 वर्षीय लिजी वेलाक्वेज के साथ भी कुछ ऐसा ही हैं। 5 फीट 2 इंच लंबी लिजी का वजन 45 किग्रा है और हर 15 मिनट में वह कुछ न कुछ खाती हैं। इसके बावजूद भी वह बेहद दुबली-पतली हैं।

लिजी एनऑरेजिक (खाने के डिसऑर्डर) से भी पीड़ित नहीं हैं। दरअसल लिजी को स्वस्थ रहने के लिए 15 मिनट में खाना पड़ता है। पूरी दुनिया में लिजी की तरह के कुल तीन मामले हैं। दिन भर में 60 बार खाने से भी लिजी का वजन बढ़ नहीं रहा। लिजी रोजाना 5 से 8 हजार कैलोरी खर्च करती है लेकिन उसका वजन 45 किग्रा से नीचे नहीं जाता।

एक पुरुष को दिन भर में 2400 कैलोरी और महिला को 2200 कैलोरी की आवश्यकता होती है। लिजी का कहना है, मैं रोज अपना वजन नापती हूं। यदि मेरा एक किग्रा भी वजन बढ़ता है तो मैं खुशी से झूम जाती हूं। मैं दिन भर में जमकर चाकलेट, चिप्स, मिठाई, फ्राई, पिज्जा, चिकन, केक, डोनट, आइसक्रीम, नूडल खाती हूं।

यीशु को नहीं चढ़ाया गया था सूली पर!

स्वीडन के एक विद्वान ने दावा किया है कि संभवत: यीशु को सूली पर नहीं चढ़ाया गया था। इस विद्वान के मुताबिक ऐसे कोई सबूत नहीं है जिनसे साबित हो कि रोमनों ने 2,000 वर्ष पहले बंदियों को सूली पर चढ़ाया था। स्वीडन की वेबसाइट ‘द लोकल’ के मुताबिक यह दावा गुटेनबर्ग यूनिवर्सिटी के गुन्नार सेम्युअलसन ने किया है।

गुन्नार के मुताबिक, यीशु को सूली पर चढ़ाने की बात ईसाई परंपराओं तथा कलात्मक चित्रों पर आधारित है, किसी प्राचीन ग्रंथ पर नहीं। उनकी हाल ही में इस संबंध में डॉक्टरेट की एक थीसिस प्रकाशित हुई है। गुन्नार की 400 पृष्ठों की यह थीसिस मूल ग्रंथों के गहन अध्ययन पर आधारित है।

ईसाई धर्म में श्रद्धा रखने वाले गुन्नार ने दावा किया कि बाइबिल की गलत व्याख्या की गई है। उन्होंने एक अखबार को बताया कि प्राचीन यूनानी, लैटिन और हिब्रू साहित्य में सजाएं निलंबित करने का जिक्र मिलता है। लेकिन किसी में भी सूली पर चढ़ाने की बात नहीं है।

महामशीन ने फिर तोड़ा रिकॉर्ड


जिनिवा. लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (एलएचसी) नामक महामशीन ब्रम्हांड के रहस्यों को परत-दर-परत खोलने की दिशा में बढ़ रही है। इसी कड़ी में महामशीन ने जहां पिछले वर्ष पदार्थ के सूक्ष्म कणों की तेज गति से टक्कर कराकर भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न की थी।

वहीं अब एक बार फिर इस मशीन ने अपने पिछले रिकॉर्ड को तोड़ते हुए इसी क्रिया को दोहराकर इस बार पहले से करीब 10 हजार गुना ऊर्जा उत्पन्न की है। जिससे इस मशीन ने अपने ही पिछले रिकॉर्ड को तोड़ने में सफलता हासिल की है। भौतिक शास्त्री आंद्रेइ गोलुटविन के अनुसार इस मशीन से वर्तमान में पहले की अपेक्षा प्रति सेकंड 10 हजार गुना ऊर्जा उत्पन्न हो रही है।

गौरतलब है कि 27 किलोमीटर की सुरंग में बनी यह मशीन फ्रांस और स्विटजरलैंड की सीमा पर स्थित है। यूरोप का अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन संचालित कर रहा है। भौतिक शास्त्रियों की मानें तो यह मशीन अब तक की सबसे बड़ी ऐसी मशीन है जो इतनी ज्यादा मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न कर रही है। साथ ही यह मशीन अब ब्रम्हांड के रहस्यों को खोलने के बेहद करीब है। इस महाप्रयोग से बिग-बैंग जैसी अंतरिक्षीय घटनाओं से पर्दा उठ सकेगा।




आइए जानें क्या है महामशीन

फ्रांस और स्विट्ज़रलैंड की सीमा पर अरबों डॉलर की लागत से चल रहे दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिक परीक्षण में ब्रम्हांड के रहस्यों से जुड़े कुछ सवालों के तलाशने की कोशिश की जा रही है। कैसे पड़ा 'लार्ज हैडरॉन कोलाइडर' नाम

सर्न (यूरोपियन अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) की बिग-बैंग या महाटक्कर मशीन के नाम लार्ज हैडरॉन कोलाइडर में ‘लार्ज’ शब्द का प्रयोग इसकी विशालता को देखते हुए किया गया है। ज़मीन के 100 मीटर भीतर एक वृताकार सुरंग के रूप में स्थापित इस मशीन की परिधि लगभग 27 किलोमीटर है।

इसमें प्रोटॉन कणों की धारा को नियंत्रित करने के लिए बड़े-बड़े आकार के नौ हज़ार से ज़्यादा चुंबक लगे हुए हैं। चुंबकों को ठंडा रखने के लिए 10 हज़ार टन से ज्यादा तरल नाइट्रोजन का उपयोग किया गया है। इस वृताकार मुख्य हिस्से के चार मुख्य पड़ावों पर लाखों कलपुर्ज़ों वाली अलग-अलग मशीनें लगाई गई हैं।

इस महामशीन के नाम में ‘हैडरॉन’ इसलिए लगाया गया है कि इसके ज़रिए नाभिकीय कणों की टक्कर कराई जाएगी। क्वार्क नामक सूक्ष्म पदार्थ से निर्मित न्यूट्रॉन और प्रोटॉन जैसे नाभिकीय कणों को हैडरॉन कहा जाता है। हैडरॉन ग्रीक भाषा के शब्द ‘एडरॉस’ से बना है, जिसका मतलब होता है भारी।

सर्न की महामशीन में कोलाइडर शब्द का सीधा-सीधा मतलब हुआ टक्कर कराने वाला। नाम में ये शब्द इसलिए लगाया गया है कि इसे सौंपा गया जो मुख्य काम है वो है- प्रोटॉन कणों की आपस में लगभग प्रकाश की गति से टकराना।

लार्ज हैडरॉन कोलाइडर के निर्माण पर कितना ख़र्च आया है?

सिर्फ़ मशीन के कलपुर्ज़ों की ही क़ीमत ही तीन अरब यूरो बैठती है। इसके अलावा क़रीब एक अरब यूरो इन कलपुर्ज़ों को जोड़ने और मशीन का रखरखाव करने वाले वैज्ञानिकों पर ख़र्च किए गए हैं। यानी कुल चार अरब यूरो की है महामशीन. रुपये में कहें तो कोई ढाई खरब रुपए।


लार्ज हैडरॉन कोलाइडर का निर्माण भूमिगत ही क्यों?

ये फ़ैसला व्यावहारिक कारणों से लिया गया। 27 किलोमीटर परिधि वाला संयंत्र ज़मीन के ऊपर बनाने पर ख़र्चा कई गुना ज़्यादा आता। ज़मीन अधिग्रहण करने का झमेला ऊपर से इस तरह के प्रयोग ज़मीन के भीतर होने का एक फ़ायदा ये भी है कि पैदा होने वाले विकिरणों को नियंत्रित करना ज़्यादा आसान होगा। इसके अलावा चूंकि सर्न के इससे पहले के प्रयोग एल-ई-पी को भी भूमिगत ही किया गया था, जिसके 2000 में पूरा हो जाने के बाद उसके लिए निर्मित सुरंगों का दोबारा उपयोग इस परियोजना के लिए किया जा रहा है।


लार्ज हैडरॉन कोलाइडर में प्रोटॉन कणों की जो टक्कर कराई जाएगी उसमें निकलने वाली ऊर्जा के बारे में क्या विशेष बातें हैं?

सर्न की महामशीन के वृताकार सुरंग में बहाई जाने वाली प्रोटॉन धारा में हर प्रोटॉन कण की ऊर्जा 7 टेट्रा-इलेक्ट्रॉनवोल्ट होगी। जो कि टक्कर के समय दुगुनी मात्रा में पहुँच जाएगी यानि 14 टेट्रा-इलेक्ट्रॉनवोल्ट, यदि आम जीवन में हम लोगों द्वारा प्रयुक्त ऊर्जा की मात्रा से तुलना करें तो ये मात्रा कुछ भी नहीं है। विशेष बात सिर्फ़ ये है कि टक्कर की ऊर्जा बहुत ही छोटे से बिंदु पर केंद्रित होगी।

एक उदाहरण से समझाया जाए तो यदि आप ताली बजाएँ तो आपकी दोनों हथेलियों की टक्कर में सर्न की महामशीन में कराई जा रही दो प्रोटॉन कणों की टक्कर से ज़्यादा ऊर्जा निहित होती है। लेकिन इस ऊर्जा अपेक्षाकृत बड़े क्षेत्र में केंद्रित होती है।

एक मच्छर को भी उड़ते समय एक टेट्रा-इलेक्ट्रॉनवोल्ट ऊर्जा की ज़रूरत होती है, इसलिए लार्ज हैडरॉन कोलाइडर में प्रोटॉन कणों की टक्कर के दौरान 14 टेट्रा-इलेक्ट्रॉनवोल्ट की ऊर्जा कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात है- इस ऊर्जा का नैनोमीटर के अरबवें-खरबवें अंश जितने अतिसूक्ष्माकार पर केंद्रित होना।