महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है । कभी कभी केवल भारत कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ है। यह हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। यह विश्व का सबसे लंबा साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य है। हालाँकि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कॄतियों में से एक माना जाता है किन्तु आज भी यह प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कॄति हिन्दुओं के इतिहास की एक गाथा है। पूरे महाभारत में एक लाख श्लोक हैं जो इलियड और ओडिसी से सात गुणा ज्यादा है। इसी में भगवद्गीता सन्निहित है।
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परिचय
महाभारत की विशालता और दार्शनिक गूढता न सिर्फ़ भारतीय मूल्यों का संकलन है बल्कि हिन्दू धर्म और वैदिक परंपरा का भी सार है। महाभारत की विशालता का अंदाजा उसके प्रथम पर्व में उल्लेखित एक श्लोक से लगाया जा सकता है : "जो यहाँ (महाभारत में) है वह आपको संसार में कहीं न कहीं अवश्य मिल जायेगा, जो यहाँ नहीं है वो संसार में आपको अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा"
महाभारत सिर्फ राजा-रानी, राजकुमार-राजकुमारी, मुनियों और साधुओं की कहानी से बढकर कहीं ज्यादा व्यापक और विशाल है, इसके लेखक व्यास का कहना है कि महाभारत धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष की कथा है। कहानी की निष्पत्ति मोक्ष पर जाकर होती है जो हिन्दुओं द्वारा मानव जीवन का परम लक्ष्य माना गया है।
पॄष्ठभूमि और इतिहास
कहा जाता है कि यह महाकाव्य, भगवान वेद व्यास, जो स्वयं इस महाकाव्य में एक प्रमुख पात्र हैं, द्वारा बोलकर, भगवान गणेश द्वारा लिखवाया गया ऐसा महाभारत के प्रथम अध्याय में उल्लेखित है. कहा जाता है कि जब व्यास ने भगवान गणेश के सामने यह प्रस्ताव रखा था तो गणेश तुरन्त तैयार हो गये थे, लेकिन शर्त यही थी कि व्यास कथा कहते समय एक पल भी विश्राम के लिये नहीं रुकेंगे. व्यास ने भी इस शर्त को स्वीकार कर लिया लेकिन उन्होंने भी भगवान गणेश के साथ एक शर्त रख दी कि वे लिखने से पहले उनके कहे वाक्यों को पूरी तरह समझने के बाद ही लिखेंगे. इस तरह लिखवाते समय व्यास को कुछ सोचने का मौका मिल गया. यह कथा जनमानस में प्रचलित एक कथा से भी मेल खाती है जिसमें बताया गया है कि गणेश जी का एक दाँत कैसे टूटा (गणेश जी की पारंपरिक छवि), कहा जाता है कि महाभारत लिखने के चक्कर में जल्दबाजी में ताकि लिखने में बाधा न आये एक बार कलम उनके हाथ से छूट गयी और वे अपना एक दाँत तुड़वा बैठे।
ऐसा माना जाता है कि इस महाकाव्य की शुरुआत एक छोटे सी रचना जय से हुई थी. हालाकि इसकी कोई निश्चित तिथी मालूम नहीं है लेकिन इसे आमतौर पर वैदिक युग में लगभग १४०० इसवी ईसा पूर्व के समय का माना जाता है। विद्वानों ने इसकी तिथी निरधारित करने के लिये इसमें वर्णित सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहणों के बारे में अध्ययन किया है और इसे ३१ वीं सदी इसा पूर्व का मानते हैं, लेकिन मतभेद अभी भी जारी है।
इस काव्य में बौद्ध धर्म का वर्णन नहीं, पर जैन धर्म का वर्णन है, अतः यह काव्य गौतम बुद्ध के काल से पहले अवश्य पूरा हो गया था। [१]
शल्य जो महाभारत में कौरवों की तरफ से लड़ा था उसे रामायण में वर्णित लव और कुश के बाद की ५० वीं पीढ़ी का माना जाता है. इसी आधार पर कुछ विद्वान महाभारत का समय रामायण से १००० वर्ष बाद का मानते हैं. तिथियाँ चाहे जो भी हों इन्हीं काव्यों के आधार पर वैदिक धर्म का आधार टिका है जो बाद में हिन्दू धर्म का आधुनिक आधार बना है।
आर्यभट के अनुसार महाभारत युद्ध ३१३७ ईपू में हुआ। कलियुग का आरम्भ कृष्ण के इस युद्ध के ३५ वर्ष पश्चात निधन पर हुआ।
ज्यादातर अन्य भारतीय साहित्यों की तरह यह महाकाव्य भी पहले वाचिक परंपरा द्वारा हम तक पीढी दर पीढी पहुँची है. बाद में छपाई की कला के विकसित होने से पहले ही इसके बहुत से अन्य भौगोलिक संस्करण भी हो गये हैं जिनमें बहुत सी ऐसी घटनायें हैं जो मूल कथा में नहीं दिखती या फिर किसी अन्य रूप में दिखती है।
महाभारत: अनुपम काव्य
इस महाकाव्य की मुख्य कथा हस्तिनापुर की गद्दी के लिये दो वंश के वंशजों कौरव और पाण्डव के बीच का आपसी संघर्ष था. हस्तिनापुर और उसके आस-पास का इलाका आज के गंगा से उत्तर यमुना के आस-पास दोआब का ईलाका माना जाता है. जहाँ आजकल की दिल्ली भी स्थित है. इन भाइयों के बीच की लड़ाई आज के हरियाणा स्थित कुरुक्षेत्र के आस-पास हुई मानी गयी है जिसमें पांडव विजयी हुये थे। महाभारत की समाप्ति भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु और यदु-वंश की समाप्ति तथा पांडवों के स्वर्ग गमन के साथ होती है। पांडव की यह यात्रा मोक्ष प्राप्ति को दर्शाता है जो हिन्दुओं के जीवन का सबसे प्रमुख लक्ष्य माना जाता है। इस घटना को कलि-युग के आरंभ का भी संकेत माना गया है क्योंकि इससे महाभारत के अठारह दिन की लड़ाई में सत्य की सत्ता भंग हुयी थी। इस कलि-युग को हिन्दुओं के अनुसार सबसे अधम युग माना गया है जिसमें हर तरह के मूल्यों का क्षरण होता है और अंत में कल्कि नामक विष्णु के अवतार इन सबसे हमारी रक्षा करेंगें। हिन्दू इतिहास के सबसे प्रमुख स्तंभों का इस लड़ाई में अनैतिकता (कौरवों) का साथ देना इसकेए वजह माना जाता है।
कथा
महाभारत की कथा में एक साथ बहुत सी कथाएँ गुंफित हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख कथायें निम्नलिखित हैं:-
- सबसे प्रमुख कहानी कर्ण की कहानी है। कर्ण एक महान योद्धा थे किन्तु अपने गुरु से अपनी पहचान छुपाने के कारण उनकी शक्ति गौण हो गयी थी।
- भीष्म की कहानी जिसने अपना राजपाट अपने पिता की वजह से त्याग दिया था, क्योंकि उसके पिता ने एक मछुआरे की कन्या से विवाह किया था। भीष्म ने आजीवन ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा ली थी और उन्हें अपने पिता शान्तनु से इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त हुआ था।
- भीम की कहानी, जो पाँच पाँडवों मे से एक थे और अपने बल और स्वामिभक्ति के कारण जाने जाते थे।
- युधिष्ठिर की कहानी: युधिष्ठिर जो पांचों पांडवों मे सबसे बड़े थे उन्हें धर्मराज के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने कभी जीवन में झूठ का सहारा नहीं लिया। और महाभारत के मध्य कैसे केवल एक झूठ के कारण कैसा परिणाम भुगतना पड़ा था।
संरचना
- आदिपर्व - परिचय, राजकुमारों का जन्म और लालन-पालन।
- सभापर्व - दरबार की झलक, द्यूत क्रीड़ा और पांडवों का वनवास। मय दानव द्वार इंद्रप्रस्थ में भवन का निर्माण।
- अरयण्कपर्व (अरण्यपर्व) - वनों में १२ वर्ष का जीवन।
- विराटपर्व - राजा विराट के राज्य में अज्ञातवास।
- उद्योगपर्व- युद्ध की तैयारी।
- भीष्मपर्व - महाभारत युद्ध का पहला भाग, भीष्म कौरवों के सेनापति के रूप में (इसी पर्व में भगवद्गीता आती है)।
- द्रोणपर्व - युद्ध जारी, द्रोण सेनापति।
- कर्णपर्व - युद्ध जारी, कर्ण सेनापति।
- शल्यपर्व - युद्ध का अंतिम भाग, शल्य सेनापति।
- सौप्तिकपर्व - अश्वत्थामा और बचे हुये कौरवों द्वारा पाण्डव सेना का सोये हुये में वध।
- स्त्रीपर्व - गान्धारी और अन्य स्त्रियों द्वारा मृत लोगों के लिये शोक।
- शांतिपर्व - युधिष्ठिर का राज्याभिषेक और भीष्म के दिशा-निर्देश।
- अनुशासनपर्व - भीष्म के अंतिम उपदेश।
- अश्वमेधिकापर्व - युधिष्ठिर द्वारा अश्वमेध का आयोजन।
- आश्रम्वासिकापर्व - धृतराष्ट्र, गान्धारी और कुन्ती का वन में आश्रम के लिये प्रस्थान।
- मौसुलपर्व - यादवों की परस्पर लड़ाई।
- महाप्रस्थानिकपर्व - युधिष्ठिर और उनके भाइयों की सद्गति का प्रथम भाग।
- स्वर्गारोहणपर्व - पांडवों की स्वर्ग यात्रा।
इसके अलावा १६,३७५ श्लोकों का एक उपसंहार भी बाद में महाभारत में जोड़ा गया था जिसे हरिवंशपर्व कहा जाता है। इस अध्याय में खास कर भगवान श्री कृष्ण के बारे में वर्णन है।
महाभारत के कई भाग हैं जो आमतौर पर अपने आप में एक अलग और पूर्ण पुस्तक मानी जाती है। मुख्य रूप से इन भागों को अलग से महत्व दिया जाता है :-
- भगवद गीता श्री कृष्ण द्वारा भीष्मपर्व में अर्जुन को दिया गया उपदेश।
- दमयन्ती अथवा नल दमयन्ती, अरण्यकपर्व में एक प्रेमकथा
- कृष्णवार्ता : भगवान श्री कृष्ण की कहानी।
- राम रामायण का अरण्यकपर्व में एक संक्षिप्त रूप।
- ॠष्य ॠंग एक ॠषि की प्रेमकथा।
- विष्णुसहस्रनाम विष्णु के १००० नामों की महिमा शांतिपर्व में।
कुरुवंश वृक्ष
| | | | | | | | | | कुरुa | | | | | | | | | | | | | | | | | | ||||||||||||||||||||||||||||||||||
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| | गंगा | | | | | | शांतनुa | | | | | | | | सत्यवती | | | पाराशर | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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| | | | | | भीष्म | | | | | | | | | | | | | | | | व्यास | | | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||
अंबिका | | | | | | | | | | | | विचित्रवीर्य | | | | अंबालिका | | | | | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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| धृतराष्ट्रb | | गांधारी | | सूर्य | | | कुंती | | पाँडुb | | | माद्री | | | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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| | | | | | कर्णc | | युधिष्ठिरd | | भीमd | | अर्जुनd | | नकुलd | | सहदेवd | | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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दुर्योधनe | | दुःशला | | दु:शासन | | (98 अन्य पुत्र) | | | | | | | | | | | | | | | | | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
प्रतीकों की कुण्जी
- पुरुष: नीली रेखा
- स्त्री: लाल रेखा
- पाँडव: हरा सन्दूक
- कौरव: लाल सन्दूक
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