Saturday, May 1, 2010
अब बच्चू कहां जाओगे..
आइए देखते हैं प्रकृति के कुछ मनोहारी दृश्य -
वशीकरण का सबसे आसान तरीका
पारम्परिक और लम्बे रास्ते पर ना तो वह चलना चाहता है और ना ही उसके पास इतना समय होता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए ही यहां वशीकरण यानि किसी को अपने प्रभाव में लाने या अनुकूल बनाने का सरल अनुभवी एवं अचूक तरीका या उपाय दिया जा रहा है। यह अचूक और शर्तिया कारगर उपाय इस प्रकार है-- जिस भी व्यक्ति को आप अपने वश में करना चाहते हैं, उसका एक चित्र जो कि लगभग पुस्तक के आकार का तथा स्पष्ट छवि वाला हो, उपलब्ध करें। उस चित्र को इतनी ऊंचाई पर रखें कि जब आप पद्मासन में बैठे, तो उस चित्र की छवि आपकी आंखों के सामने ही रहे। ५ मिनिट तक प्राणायाम करने के पश्चात उस चित्र पर ध्यान एकाग्र करें। पूर्ण गहरे ध्यान में पंहुचकर उस चित्र वाले व्यक्तित्व से बार-बार अपने मन की बात कहें। कुछ समय के बाद अपने मन में यह गहरा विश्वास जगाएं कि आपके इस प्रयास का प्रभाव होने लगा है। यह प्रयोग सूर्योदय से पूर्व होना होता है।
यह पूरा प्रयोग असंख्यों बार अजमाने पर हर बार सफल रहता है। किन्तु इसकी सफलता पूरी तरह से व्यक्ति की एकाग्रता और अटूट विश्वास पर निर्भर रहती है। मात्र तीन से सात दिनों में इस प्रयोग के स्पष्ट प्रभाव दिखने लगते हैं।
वशीकरण का सबसे आसान तरीका
हाथ मिलाना आज शिष्टाचार का अंग यानि कि प्रतीक मान लिया गया है। किसी भी कामकाजी व्यक्ति को आज अधिकांश समय घर से बाहर गुजारना पड़ता है। दिनभर में उसकी सैकड़ों परिचितों से मुलाकात होती है। जिनमें से अधिकांश के विषय में बहुत कम और सतही जानकारी ही होती है। मनुष्य के शरीर में चेहरा और हथेलियां सर्वाधिक संवेदनशील अंग हैं। इंसान के व्यक्तित्व के अनुसार ही इन अंगों पर सकारात्मक अथवा नकारात्मक ऊर्जा का संग्रह रहता है। यदि किसी बुरे व्यक्तित्व या स्वभाव के व्यक्ति से आप हाथ मिलाते हैं, तो इससे आपके व्यक्तित्व पर निश्चित रूप से हानिकारक प्रभाव पड़ता है। अत: शिष्टाचार के नाम पर हानि उठाने की बजाय हाथ जोड़कर नमस्कार करें और अधिक शिष्ट कहलाएं।
आखिर क्यों करता है कोई प्रेम-विवाह ?
विज्ञान की नजर से- रसायन विज्ञानियों का मानना है कि ऐसा तब होता है जब शरीर में एक विशेष प्रकार हार्मोन्स का स्राव होने लगता है।
मनोविज्ञान- किन्तु यदि हम मनोविज्ञान के दृष्टिकोण से सोचेंगे तो एक नई और अधिक व्यावहारिक बात सामने आएगी। वह यह कि इंसानी मन की यह फितरत होती है कि उसे जिस काम से रोका जाए ,उसे उसी काम में अधिक रस मिलता है।बचपन से ही लड़के-लड़की को एक दूसरे से दूर रहने की समझाइस मिलती रहती है, यहीं से उनके मन में आकर्षण के बीज बुवने लगते हैं। एक दूसरा कारण यह है कि इंसान को तैयार माल अधिक आकर्षित करता है। कपड़े खरीद कर दर्जी को नाप देकर फिर ड्रेस तैयार हो, इसमें वो आकषण नहीं जो रेडीमेड कपड़ों में होता है।
शादी से पहले वे ऐसे तो न थे.....
अधिकांश लोगों का यह अनुभव होगा कि विवाह होने के बाद प्रेम-स्नेह पहले जैसा नहीं रहता। अरेंज मैरिज ही नही, मनपसंद जोडिय़ों की भी यही दशा है। बड़े आश्चर्य का विषय है कि, जिन्होंने अपने प्रेमी से विवाह करने के लिये माता-पिता, परिवार तथा समाज सभी का विरोध किया व सहा भी, वे ही शादी के बाद एक-दूसरे के लिये सर्वाधिक अरुचि के पात्र बन जाते हैं। क्या कारण है कि शादी के बाद इंसान को एक दूसरे की कमियां ही नजर आती हैं। शादी से पहले या तुरंत बाद में जो जोड़ीदार आकर्षण का केन्द्र लगता था अचानक बदल कैसे जाता है ?
हकीकत- इस विषय पर गहन चिंतन किया जाए और निष्पक्ष दृष्टि रखकर मनोवैज्ञानिक नजरिये से सोचा जाए तो सारी हकीकत सामने आ जाती है। हकीकत यह है कि शादी के बाद कोई इंसान नहीं बल्कि व्यक्ति का देखने का नजरिया बदल जाता है। पहले जो व्यक्ति अपने साथी की जिन खूबियों से प्रभावित और आकर्षित था, अब वे उसके लिये पुरानी पड़ चुकी होती हैं। दूसरी तरफ नवीनता के आकर्षण में जिन कमियों को अनदेखा किया जा रहा था, अब वे उभर कर सामने आ जाती हैं। दूर के ढोल सुहावने लगने वाली कहावत यहां पूरी तरह से लागू होती है। जो ढोल दूर से बजने के कारण अति मधुर लग रहे थे, अब रात दिन कान के पास बजने के कारण बड़े बेसुरे ही नहीं कर्कश भी लगने लगते हैं।
शादी के महान एवं अनमोल रिश्ते की मधुरता को यदि बनाए रखना हो तो दो बातें बड़ी कारगर व कीमती हैं। पहली यह कि कमजोरियां और गलतियां प्रत्येक इंसान का मानवीय स्वभाव होती हैं। किसी को अपने सांचे में ढालने की कोसिश करना ना तो उचित है और न ही संभव ही है। दूसरी काम की बात यह कि एक-दूसरे के साथ बिताए जाने वाले समय की क्वालिटी पर ध्यान दें न कि क्वांटिटी पर। रिश्ते की मधुरता दोनों की योग्यता और समझ पर ही निर्भर होती है।
क्यों किया जाता है घूंघट?
पर्दा प्रथा को भारतीय परंपरा में अनुशासन और सम्मान की दृष्टि से लिया जाता है। घर की बहुओं को परिवार के बड़ों के आगे घूंघट निकालना होता है, ग्रामीण क्षेत्रों में तो यह अनिवार्य है ही साथ ही कई महानगरीय परिवारों में भी ऐसा चलन है। सवाल यह है कि भारतीय परंपरा में घूंघट कब और कैसे आया? क्या सनातन समय से यह परंपरा चली आ रही है या फिर कालांतर में यह प्रचलन बढ़ा है?
वास्तव में घूंघट हिंदुस्तान पर आक्रमण करने वाले आक्रमणकारियों की ही देन है। पहले राज्यों में आपसी लड़ाइयां और फिर मुगलों का हमला। इन दो कारणों ने भारत में पूजनीय दर्जा पाने वाले महिला वर्ग को पर्दे के पीछे कर दिया। भारतीय महिलाओं की सुंदरता से प्रभावित आक्रमणकारी अत्याचारी होते जा रहे थे। महिलाओं के साथ बलात्कार और अपहरण की घटनाएं बढ़ने लगीं तो महिलाओं की सुंदरता को छिपाने के लिए घूंघट का इजाद हो गया।
पहले यह आक्रमणकारियों से बचने के लिए था, फिर परिवार में बड़ों के सम्मान के लिए और धीरे से इसने अनिवार्यता का रूप धारण कर लिया। आक्रमणकारी चले गए, देश आजाद हो गया लेकिन महिलाओं के चेहरों पर पर्दा अब भी कायम है।
हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता कैसे?
सामान्यत: कहा जाता है कि हिंदुओं के 33 करोड़ देवी-देवता हैं। इतने देवी-देवता कैसे? यह प्रश्न कई बार अधिकांश लोगों के मन में उठता है। शास्त्रों के अनुसार देवताओं की संख्या 33 कोटि बताई गई हैं। इन्हीं 33 कोटियों की गणना 33 करोड़ देवी-देवताओं के रूप में की जाती है। इन 33 कोटियों में आठ वसु, ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, इंद्र और प्रजापति शामिल है। इन्हीं देवताओं को 33 करोड़ देवी-देवता माना गया है।
कुछ विद्वानों ने अंतिम दो देवताओं में इंद्र और प्रजापति के स्थान पर दो अश्विनीकुमारों को भी मान्यता दी है। श्रीमद् भागवत में भी अश्विनीकुमारों को ही अंतिम दो देवता माना गया है। इस तरह हिंदू देवी-देवताओं में तैंतीस करोड़ नहीं, केवल तैंतीस ही प्रमुख देवता हैं। कोटि शब्द के दो अर्थ हैं, पहला करोड़ और दूसरा प्रकार या तरह के। इस तरह तैंतीस कोटि को जो कि मूलत: तैंतीस तरह के देव-देवता हैं, उन्हें ही तैंतीस करोड़ माना गया है।
जब मधुमक्खियों ने ढक दी कार
मिशिगन में एक कार को हजारों मधुमक्खियों ने ढक दिया। इससे कार मालिक काफी घबरा गया और भागता हुआ अपनी पत्नी के पास पहुंचा। तान्या यंग ने बताया कि उसके पति की कार को हजारों की तादाद में इकट्ठा हुई मधुमक्खियों ने पूरी तरह से ढक दिया।
जब यह बात मुझे मेरे पति ने बताई तो मैं इस पर विश्वास नहीं कर सकी। मैंने सोचा की यह एक मजाक है। लेकिन जब मैंने देखा कि हमारे पड़ोसियों ने अपने घर की खिड़की और दरवाजे बंद कर रखे हैं तब मुझे इस बात का एहसास हुआ।
हमारे घर के पास में ही एक पेड़ पर मधुमक्खियों का छत्ता है पर पता नहीं क्यों अचानक से वे झुंड बनाकर इस तरह से यहां आ गईं। हालांकि बाद में मधुमक्खी पालने वाले जिम जोएनर को बुलाया गया। जिम और उसके एक साथी ने मिलकर उन मधुमक्खियों को वहां से हटा दिया
देखा है कहीं ऐसा याराना..
एक गिलहरी को इंसान से हाथ मिलाने की प्रेरणा कहां से मिली? ये बड़ा ही विचित्र सवाल है। फिर भी ब्रिटेन के बुशक्राफ्ट एक्सपर्ट स्टीव इंग्लैंड ने ये काम कर दिखाया है। इसके लिए उन्हें लंबे समय तक सब्र से काम लेना पड़ा। हमेशा जंगलों में घूमकर काम करने वाले स्टीव ने धीरे-धीरे इस गिलहरी से नजदीकी बढ़ाई है। पहले वे उसे अखरोट खिलाते थे तो वह उन्हें उठाकर तुरंत भाग जाती थी।
ब्रिस्टल के स्ट्रोक पार्क में स्टीव अपने साथी एलेक्स वुड के साथ जाकर हमेशा गिलहरी को प्रोत्साहित करते रहते थे। अब ये स्थिति है कि गिलहरी उनके साथ बैठी रहती है। उनसे हाथ मिलाती है। इतना ही नहीं अखरोट दिए जाने का इंतजार भी नहीं करती। उनके कंधे पर बैठकर जेब में से अखरोट अपने-आप निकाल लेती है।
मरकर भी नहीं छूटा साथ
पोटरे रिको के बाइकर डेविड मोरेल्स कोलोन को बाइक्स से कितना प्यार था ये लोगों को उनकी मौत के बाद समक्ष आया है। पिछले सप्ताह गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई थी। हमेशा पॉवरफुल बाइक्स पर सड़कों और रेस ट्रेक पर नजर आने वाले कोलोन की जान चली गई लेकिन उनका हाथ बाइक के हैंडल से जुदा नहीं हुआ।
उनकी इच्छा के अनुसार उनके घर वालों ने सेन जुआन के फ्यूनेरल होम में लोगों के दर्शन के लिए उनका शरीर बाइक पर सजाया था। बाइक पर रखे उनके मृत शरीर को देखकर ऐसा लगता है वे पूरी रफ्तार में बाइक चला रहे हैं। अगर किसी को पता न हो तो वह समझ नहीं सकता कि बाइक पर शव रखा है। उनके पैर बाइक के ब्रेक और गियर पर रखे गए हैं और सीट पर हेलमेट भी रखा हुआ है।
मौत के बाद भी अपनी प्यारी बाइक पर बैठे कोलोन को देखने बहुत से लोग वहां पहुंचे थे और उन्होंने उनकी इस अंदाज में तस्वीरें भी खींची थीं। इसी तरह 2008 के एक मामले में भी वहां एक 24 वर्षीय युवक को उसकी अंतिम इच्छा के तहत तीन दिन तक घर के लिविंग रूम में खड़ा कर रखा गया था।
चेहरा छुपाया तो मिलेगी सजा
बेल्जियम में सार्वजनिक स्थानों पर बुर्का पहनने पर रोक लगाने संबंधी विधेयक को संसद ने मंजूरी दे दी है। ऐसा फैसला करने वाला यह यूरोप का पहला देश है। विधेयक में नियमों को न मानने पर जुर्माने और सजा का भी प्रावधान है।
देश की संसद के निचले सदन में गुरुवार को इस विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। हालांकि इसको लागू होने में अभी समय लगेगा। राजनीतिक संकट का सामना कर रहे देश में अगर समय पूर्व चुनाव की स्थितियां बनती हैं तो इस पर पुनर्विचार भी हो सकता है। सभी सत्तारूढ़ और विपक्षी सांसद विधेयक के पक्ष में हैं। उनका मानना है कि ऐसा सुरक्षा कारणों से भी अनिवार्य है।
लिबरल सांसद डेनिस ड्यूक्रेम का कहना है कि शुरूआत तो हमने कर दी है। हमें यह भी आशा है कि फ्रांस, स्विट्जरलैंड, इटली और नीदरलैंड जैसे देश भी इसका अनुसरण करेंगे। विधेयक के मुताबिक किसी भी सार्वजनिक स्थान पर बुर्का पहनने पर 20-34 डॉलर तक का जुर्माना और सात दिन की सजा हो सकती है। हालांकि मुस्लिम संगठनों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। मुस्लिम एक्जीक्यूटिव ऑफ बेल्जियम की वाइस प्रेसीडेंट इसाबेल प्रेल के मुताबिक यह धार्मिक पहचानों पर प्रहार है और आगे अन्य धर्म भी इसका शिकार हो सकते हैं। प्रतिबंध लगा तो इसके गंभीर परिणाम होंगे।