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Tuesday, March 30, 2010

हनुमानजी की पूजा वानर रूप में क्यों?

hanumanहमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों में हनुमान को परम तेजस्वी बताया गया है। साथ ही वे अष्ट सिद्धियां व नव निधियों से परिपूर्ण हैं.. उनमें असामान्य बल हैं.. वे इच्छानुसार रूप बना लेते हैं.. वे हवा में अति तीव्रता से गमन कर लेते हैं.. विभिन्न दिव्य अस्त्रों-शस्त्रों वाले अविजित योद्धा हैं.. ऐसी कई दुर्लभ और असामान्य शक्तियां के स्वामी है हनुमानजी। साथ ही हनुमानजी कई भाषाएं जानते हैं। वे सभी शास्त्रों के ज्ञाता, परम विद्वान और अति सभ्य हैं।

इतनी अद्भुत बातों के देखते हुए एक प्रश्न प्राय: उठता है कि क्या इतनी शक्तियां किसी वानर के पास हो सकती है? क्या हनुमानजी वानर है? सामान्यत: सभी मानते है कि वे वानर ही है, वानर यानि बंदर। परंतु ऐसी दुर्लभ शक्तियों को देखते हुए हनुमानजी का वानर होना निश्चित ही एक रहस्य ही है। 30 मार्च को हनुमान जयंती है, भगवान रुद्र ने हनुमान के रूप में अवतार लिया था। आइए जानते हैं हनुमान वानर थे या इंसान।

इस रहस्य को समझने के लिए हमें वानर शब्द के अर्थ को समझना पड़ेगा। वानर यानि वह प्राणी जो वन में रहता हो, जो वन में उत्पन्न आहार से ही अपने उदर की पूर्ति करता हो, जो गुफाओं में रहता हो, जो वन में रहने वाले अन्य प्राणी की ही तरह आचरण करता हो, जिसका स्वभाव वन्य जीवों के जैसा हो आदि ऐसे ही सभी गुण वाले प्राणी को वानर कहा जाना चाहिए। हमारे कई प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख है कि बाली, सुग्रीव, हनुमान सहित सभी वानर, वानर बताए गए हैं। परंतु हनुमान के महान व्यक्तित्व को देखते हुए उन्हें बंदर मान लेना समझ से परे हैं। कुछ विद्वानों का मत यह भी है कि वानर समुदाय या जाति या आदिवासी समूह के आराध्य देव बंदर रहे हो जिससे उन्हें भी वानर ही समझा जाने लगा जाने लगा जैसे नाग की पूजा करने वाले समुदाय को नागलोकवासी कहा जाता है। परंतु जिस तरह नागलोक के रहने वाले प्राणियों को सर्प की भांति नहीं समझा जाता उसी तरह चमत्कारी और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हनुमान को वानर कैसे समझा जाएं? भगवान हनुनाम शिव यानी रुद्र के अवतार हैं, उन्हें सामान्य वानर मान लेना ठीक नहीं है। वे मनुष्य जाति के लिए आदर्श हैं। मनुष्य में छिपी प्रतिभा और संभावनाओं के साक्षात प्रतिनिधि है।

जिन्ह केंरही भावना जैसी..

भगवान के लिए कहा जाता है:

जिन्ह केंरही भावना जैसी..

प्रभु मूरति तिन देखी तैसी।

अर्थात् जिसकी जैसी भावना होगी, जो भगवान को जिस रूप में देखना चाहेगा उसे भगवान उसी रूप में दर्शन देंगे.. दिखाई देंगे। उसी तरह हम हनुमान को वानर के रूप मानते हैं, पूजते हैं तो वे वानररूप ही दिखाई देते हैं। भगवान के कई रूप है, वे हर जीव में, हर रूप में सर्वत्र विराजमान हैं। अत: वानर रूप में भी वे विराजमान हैं।