Thursday, July 29, 2010
यहां है आधा शिव आधा पार्वती रूप शिवलिंग
शिव और शक्ति का दोनों के सामूहिक रुप के शिवलिंग दर्शन से जीवन से पारिवारिक और मानसिक दु:खों का अंत हो जाता है।
शिवपुराण की कथा अनुसार जब ब्रह्मा और विष्णु के बीच बड़े और श्रेष्ठ होने की बात पर विवाद हुआ, तब बहुत तेज प्रकाश के साथ एक ज्योर्तिलिंग प्रगट हुआ। अचंभित विष्णु और ब्रह्मदेव उस ज्योर्तिलिंग का आरंभ और अंत नहीं खोज पाए। किंतु ब्रह्मदेव ने अहं के कारण यह झूठा दावा किया कि उनको अंत और आरंभ पता है। तब शिव ने प्रगट होकर ब्रह्म देव की निंदा की और दोनों देवों को समान बताया। माना जाता है कि वही ज्योर्तिमय शिवलिंग ही काठगढ़ का शिवलिंग है।
चूंकि शिव का वह दिव्य लिंग शिवरात्रि को प्रगट हुआ था, इसलिए लोक मान्यता है कि काठगढ महादेव शिवलिंग के दो भाग भी चन्द्रमा की कलाओं के साथ करीब आते और दूर होते हैं। शिवरात्रि का दिन इनका मिलन माना जाता है।
काठगढ़ में सावन माह और महाशिवरात्रि के दिन विशेष शिव पूजा और धार्मिक आयोजन होते हैं। इसलिए इस समय काठगढ़ की यात्रा सबसे अच्छा मानी जाती है।
काठगढ़ शिवलिंग दर्शन के लिए पहुंचने का मुख्य मार्ग पंजाब का पठानकोट और हिमाचल प्रदेश के इंदौरा तहसील से है। जहां से काठगढ़ की दूरी लगभग ६ से ७ किलोमीटर है।
ऐसे बचें अशुभ सपनों से
1- बुरे स्वप्न को देखकर यदि व्यक्ति उठकर पुन: सो जाए अथवा रात्रि में ही किसी से कह दे तो बुरे स्वप्न का फल नष्ट हो जाता है।
2- सुबह उठकर भगवान शंकर को नमस्कार कर स्वप्न फल नष्ट करने के लिए प्रार्थना कर तुलसी के पौधे को जल देकर उसके सामने स्वप्न कह दें। इससे भी बुरे सपनों का फल नष्ट हो जाता है।
3- अपने गुरु का स्मरण करने से भी बुरे स्वप्नों के फलों का नाश हो जाता है।
4- धर्म शास्त्रों के अनुसार रात में सोते समय भगवान विष्णु, शंकर, महर्षि अगस्त्य, कपिल मुनि का स्मरण करने से भी बुरे सपने नहीं आते।
बाप रे! इतना छोटा आदमी
40 वर्षीय होंग का वजन सिर्फ १२ किलोग्राम है। होंग का जन्म फरवरी 1970 में हुआ था। होंग की मां ने बताया कि होंग मेरा दूसरा और एकमात्र बेटा है। जबकि सबसे बड़ी बात यह है कि होंग के अन्य परिवार वालों की लंबाई सामान्य है।
होंग ने कहा कि मैं जब छोटा था तब मेरी मां मुझे गोद में उठाए रहती थी लेकिन अब देखो जब मैं 40 वर्ष का हो गया हूं तब भी अपनी मां के ही गोद में रहता हूं। मेरे सभी दोस्त आज मस्त शरीर वाले हैं लेकिन भगवान ने मेरी लंबाई बढ़ने ही नहीं दी। उसने कहा कि आज भी ज्यादातर लोग मुझे बच्च ही समझ बैठते हैं। ४क् वर्षीय होंग मौजूदा समय में चीन के सुचियान क्षेत्र में अपनी मां के साथ रहते हैं।
जानें शिव व सावन के बारे में
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शिव तथा सावन से जुड़ी यह सामग्री आपके जीवन में भक्ति, ऊर्जा तथा उत्साह का संचार करेंगी। यह सामग्री आप पाएंगे सिर्फ उत्सव पेज पर।
वैवाहिक सुख बढ़ाता है - संभोग व्रत
इस व्रत का पालन हिन्दू पंचांग के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा यानि एकम और पंचमी तिथि को किया जाता है। इस व्रत में मुख्य रुप से भगवान सूर्यदेव की पूजा की जाती है। जो पंचदेवों में शामिल है। सूर्यदेव निरोग रखने वाले और आत्मज्ञान देने वाले देव हैं।
प्रात: स्नान कर पूरी पवित्रता के साथ सूर्य की प्रतिमा का गंध, फूल, अक्षत सहित १६ तरीकों से पूजन और उपासना की जाती है। दिन में एक बार बिना नमक का भोजन करें।
रात्रि में पति या पत्नी के साथ शयन करने पर भी ब्रह्मचर्य का पालन करें। शारीरिक संबंध या अन्य भोग क्रियाओं से दूर रहें।
इस व्रत के पालन से व्यक्ति ऊर्जावान, स्वस्थ, सबल रहता है और लंबे समय तक वैवाहिक सुखों की प्राप्ति कर धार्मिक दृष्टि से पुण्य का भागी भी बनता है।
मर्यादा सीखें रामायण से
रामायण में ऐसे भी कई प्रसंग आते हैं जहां मर्यादा का पालन न करने पर पराक्रमी व बलशाली को भी मृत्यु का वरण करना पड़ा। जब भगवान राम ने किष्किंधा के राजा बालि का वध किया तो उसने भगवान से प्रश्न पूछा-
मैं बेरी सुग्रीव प्यारा
कारण कवन नाथ मोहि मारा,
प्रति उत्तर में जो बात राम ने कही वह मर्यादा के प्रति समर्पण को दर्शाती है-अनुज वधू, भग्नी, सुत नारी,सुन सठ ऐ कन्या सम चारीअर्थात अनुज की पत्नी, छोटी बहन तथा पुत्र की पत्नी। यह सभी पुत्री के समान होती है। तुमने अपने अनुज सुग्रीव की पत्नी को बलात अपने कब्जे में रखा इसीलिए तुम मृत्युदंड के अधिकारी हो।
ऐसे ही मानवीय संबंधों को मर्यादाओं में बांधा गया है। इस प्रकार मर्यादाएं व्यक्ति के मन पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालती है। वर्तमान समय में जहां पाश्चात्य सभ्यता हमारे बीच घर करती जा रही हैं वहीं रामायण एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो हमें मर्यादाओं की शिक्षा दे रहा है।
माहवारी में कैसे करें व्रत पालन
सनातन धर्म में मानव जीवन के कल्याण के लिए अनेक व्रत-विधान बताए गए हैं। इनमें अनेक व्रत स्त्रियों के लिए नियत है। उन व्रतों के पालन के लिए धार्मिक नियम-संयम और पवित्र आचरण का महत्व बताया गया है। किंतु प्राकृतिक रुप से स्त्रियों के लिए कुछ स्थितियों ऐसी आती है। जिनके कारण व्रत पालन की निरंतरता में बाधा आती है। इनमें से एक कारण है - स्त्री का रजस्वला होना यानि मासिक चक्र।
मासिक या किसी विशेष व्रत के संकल्प के दौरान मासिक चक्र आने पर व्रत को लेकर हर स्त्री के मन में शंका, संशय और व्रत भंग होने के कारण धर्म दोष की पीड़ा रहती है। इन व्रतों में मुख्यत: प्रतिमाह आने वाले एकादशी, संकष्टी चतुर्थी, प्रदोष व्रत आदि हैं। यह धर्मसंकट उस समय ज्यादा पीड़ादायक होता है। जब महिलाएं विशेष कामनाओं की प्राप्ति के लिए सोलह सोमवार या सोलह शुक्रवार के व्रत रखती है। शास्त्रों में व्यावहारिक रुप से इसका उपाय भी बताया गया है-
मासिक च्रक के दौरान व्रत पालन को लेकर संशय दूर करने के लिए सबसे पहली बात है कि व्रत संख्या में उस दिन को न गिना जाए। इस दौरान व्रत रखें। किंतु यह भी जरुरी है कि किसी भी तरह से भगवान की उपासना और देव पूजा में शामिल न होवें। यही नियम मासिक और सोलह सोमवार आदि संकल्प व्रतों में व्यवहार में अपनाए। इससे व्रत भंग का दोष नहीं लगता और व्रत धर्म का पालन भी हो जाता है।
ऐसा करने पर मात्र व्रत की अवधि बढ़ जाती है। जैसे अगर आपने १६ सोमवार का व्रत लिया है तो १६ सप्ताह के स्थान पर मासिक चक्र के दिन आए सोमवार को न गिनने से यह व्रत अवधि १७ वें सप्ताह के सोमवार पर पूरी होती है।
दूसरा संशय यह कि अगर व्रत के दिन ही स्त्री रजस्वला हो जाए। तब क्या करें। तब भी ऊपर लिखी बात का ही पालन करें यानि मासिक चक्र आते ही देवकार्य और पूजा से अलग हो जाएं, किंतु व्रत रख सकते हैं।
प्रसव पीड़ा कम करे - प्रसव पीड़ाहर व्रत
इसके दूसरे पहलू पर विचार करें तो यह किसी भी स्त्री के लिए शारीरिक और व्यावहारिक रुप से पीड़ा का समय होता है। जिसे प्रसव पीड़ा भी कहते हैं। यह स्त्री के लिए एक कठिन और जोखिम भरा क्षण भी होता है। इससे गुजरकर और सहन कर वह स्वयं के साथ परिवार को खुशियां देती है। इसलिए वह जननी और शक्ति के रुप में जानी जाती है।
प्राचीन ऋषि-मुनियों ने अपने ज्ञान और दूरदर्शिता से मानव जीवन से जुड़ी हर पीड़ा को समझकर उससे निजात पाने के उपाय बताए हैं। धर्म ग्रंथों में यह उपाय व्रत उपवास के रुप में बताए गए हैं। धर्म और ईश्वर में विश्वास करने वाला हर व्यक्ति इनके पालन से कष्टों और पीड़ाओं से मुक्त होकर सुफल पाता है।
स्त्री के गर्भधारण से लेकर प्रसूति तक अनेक सावधानियां, चिकित्सीय उपाय अपनाए जाते हैं। जिससे सुरक्षित प्रसव हो और संतान प्राप्ति के रुप में मनोवांछित और सुखद फल मिले। धर्मग्रंथों में भी इसी भावनाओं को समझकर प्रसव पीड़ा हर व्रत के पालन के रुप में एक सरल प्रयोग बताया गया है, जो न केवल गर्भवती की प्रसव पीड़ा को कम करेगा बल्कि उसे निर्भय और मानसिक रुप से सबल बनाता है। जानते हैं इसकी विधि
- प्रसव की तारीख और समय नजदीक आने पर लगभग पांच या सात दिन पूर्व से गर्भवती की माँ या सास या देखरेख करने वाली निकट संबंधी व्रत रखे। हर दिन पलाश के पत्तों के दोने या कटोरी में तिल का तेल भरें। उसमें २१ स्वच्छ और पवित्र दुर्वा लेकर तेल में धीरे-धीरे घुमावे। हर बार दुर्वांकुर घुमाने पर यह मंत्र बोलें -
हिमवत्युत्तरे पार्श्र्वे शबरी नाम यक्षिणी ।
तस्या नूपुरशब्देन विशल्या स्यात्तु गर्भिणी ।।
इक्कीस बार इस मंत्र का जप हो जाने पर दोने में से थोडा-सा तेल गर्भवती को पिला दें। सहयोगी व्रती स्त्री इस मंत्र का प्रसूति के दौरान जाप करती रहे। ऐसे व्रत पालन से प्रसव और गर्भावस्था की पीड़ा कम होती है। साथ ही सुरक्षित और सुखद प्रसव होता है।
पुत्र जन्म की कामना पूरी करे - पुत्र प्राप्ति व्रत
यह व्रत वैशाख शुक्ल षष्ठी को रखा जाता है और एक वर्ष पर्यंन्त तक करने का विधान है। यह तिथि व्रत है। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव के द्वारा बताया गया है। पुत्र प्राप्ति की कामना करने वाले दंपत्ति के लिए इस व्रत का विधान है। इस व्रत में स्कन्द या कार्तिकेय स्वामी की पूजा और आराधना की जाती है। कार्तिकेय स्वामी शिव पुत्र होकर पूजनीय देवता हैं। पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय स्वामी का जन्म हुआ था। संसार को प्रताडित करने वाले तारकासुर के वध के लिए देव सेना का प्रधान बनने के लिए ही उनका जन्म हुआ था। इसलिए उनकी यह प्रिय तिथि है। वह ब्रह्मचारी रहने के कारण कुमार कहलाते हैं। योग मार्ग की साधना में कातिके य स्वामी पावन बल के प्रतीक हैं। तप और ब्रह्मचर्य के पालन से जिस बल या वीर्य की रक्षा होती है, वही स्कन्द या कुमार माने जाते हैं। इस दृष्टि से स्कन्द संयम और शक्ति के देवता है। शक्ति और संयम से ही कामनाओं की पूर्ति में निर्विघ्न होती है। इसलिए इस दिन स्कन्द की पूजा का विशेष महत्व है।
व्रत विधान के अनुसार पंचमी से युक्त षष्टी तिथि को व्रत के श्रेष्ठ मानी जाती है। व्रती को वैशाख शुक्ल पंचमी से ही उपवास करना आरंभ करे। वैशाख शुक्ल षष्ठी को भी उपवास रखते हुए स्कन्द भगवान की पूजा की जाती है। दक्षिण दिशा में मुंह रखकर भगवान को अघ्र्य देकर दही, घी, जल सहित अन्य उपचार मंत्रों के द्वारा पूजा करनी चाहिए। साथ ही वस्त्र और श्रृंगार सामग्रियां जैसे तांबे का चूड़ा आदि समर्पित करना चाहिए। दीप प्रज्जवलित कर आरती करना चाहिए। स्कन्द के चार रुप हैं - स्कन्द, कुमार, विशाख और गुह। इन नामों का ध्यान कर उपासना करना चाहिए। व्रत के दिन यथा संभव फलाहार करना चाहिए। व्रती के लिए तेल का सेवन निषेध है।
इस व्रत को श्रद्धा और आस्था के साथ वर्ष पर्यन्त करने पर पुत्र की कामना करने वाले को पुत्र प्राप्ति होती है। साथ ही संतान निरोग रहती है। यदि व्रती शुक्ल पक्ष की षष्ठी पर व्रत पालन करता है तो स्वास्थ्य का इच्छुक निरोग हो जाता है। धन क ी कामना करने वाला धनी हो जाता है।
विवाह और शरीर बाधा दूर करे - मंगलवार व्रत
व्यक्ति की जन्म कुण्डली में मंगल ग्रह दोष की शांति के लिए मंगलवार व्रत का महत्व बताया गया है।
इसकी अनुकूल दशा व्यक्ति को विवाह सुख, संतान सुख, सम्मान देने के साथ ऋण और खून में आए दोषों से मुक्ति देती है। वहीं बुरी दशा में व्यक्ति खून, नेत्र, गले के रोग से ग्रसित हो जाता है। पति-पति के लिए भी जीवन के लिए घातक और मारक हो सकता है।
अत: मंगल दोष के लिए की शांति के लिए किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के पहले मंगलवार को व्रत शुरु करना चाहिए। इस दिन स्वाति नक्षत्र का योग हो तो वह शुभ माना जाता है।
इस व्रत में मंगल ग्रह की मूर्ति की पूजा और आराधना की जाती है। इस व्रत के पूजा और अनुष्ठान किसी विद्वान ब्राह्मण से कराया जाना विशेष फल देने वाला होता है। मंगलवार के यह व्रत ४५ या २१ व्रत करने का विधान है। इसके बाद इस व्रत का उद्यापन किया जाता है। यह व्रत स्त्री और पुरुष दोनों द्वारा रखा जा सकता है।
पूजा विधान में लाल रंग की वस्तु और सामग्रियों के चढ़ावे और दान का महत्व है। क्योंकि मंगल ग्रह को रक्तवर्णी माना गया है। व्रत में एक भुक्त यानि एक बार रात्रि में ही भोजन किया जाता है। शास्त्रोक्त नियम, संयम, श्रद्धा और आस्था मंगल देव की पूजा और व्रत कुण्डली और जीवन के सभी बुरे योग और दोष मिट जाते हैं।
यह व्रत विशेष रुप से कुंवारी कन्याओं और विवाहित महिलाओं के लिए विशेष फलदायी होता है। कन्याएं जहां सुयोग्य वर पाती हैं, वहीं विवाहिता अखण्ड सौभाग्य और सुख पाती हैं। इसी प्रकार पुरुषों के लिए भी सभी शारीरिक, मानसिक बाधाएं दूर होती है। ऋणों से छुटकारा मिलता है, सुख, शांति, सौभाग्य और संतान सुख मिलता है।