Thursday, February 4, 2010

क्या है राज़ ’पास्ट लाइफ रिग्रेशन थैरेपी’ का

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साइंस के जरिए आज इंसान कई तरह की खोज कर चुका है, लेकिन अभी भी उसके सामने दिमाग का भेद जानना एक चुनौती है। साइंस अभी तक इंसान के दिमाग को नहीं जीत पाई है। आज भी अगर दिमाग पर कुछ नियंत्रण किया जा सकता है तो वो भी ध्यान और प्रणायाम के जरिए। ‘पास्ट लाइफ रिग्रेशन थैरेपी’ (पीएलआर) भी दिमाग पर काबू पाने का ही एक तरीका है जो ध्यान और प्राणायाम का ही एक हिस्सा है। कुछ लोग इसे अंधविश्वास मानते हैं। अगर ये अंधविश्वास है तो ऐसे लोगों को ध्यान और प्रणायाम को भी अंधविश्वास मानना चाहिए। पीएलआर लगभग बीस हजार साल पुरानी तकनीक है।

एक होता है रिग्रेशन और एक होता है प्रोग्रेशन। रिग्रेशन में ध्यान के जरिए आदमी को उसके पिछले समय में ले जाया जा सकता है जबकि प्रोगेशन में आने वाले समय में ले जाया जाता है। ‘पास्ट लाइफ रिग्रेशन थैरेपी’ एक तरह का सेल्फ हिप्नोटिज्म (आत्म-सम्मोहन) है, जिसमें सांसों पर नियंत्रण पाकर किसी को भी उसके पिछले जन्म या बीते समय में ले जाना मुमकिन है। ध्यान की इस अवस्था में शख्स का दिमाग उस पर हावी नहीं होता और वो तब जो कुछ भी सोचता है उसे सच्चाई के करीब माना जा सकता है।

हाल ही में आए शो 'राज़ पिछले जन्म का' के डायरेक्टर सुपवित्र बाबुल ने अपने यूरोप दौरे एक एक विदेशी डॉक्यूमेंट्री फिल्म देखी थी, जो पीएलआर तकनीक पर आधारित थी। तब उन्होंने इस कॉन्सेप्ट पर काम करना शुरु कर दिया। इस सिलसिले में उन्होंने कई तरह की वर्कशॉप में हिस्सा लिया। इस दौरान वे डॉक्टर न्यूटन और डॉ. तृप्ति जैन से मिले। डॉ. तृप्ति जैन ‘राज़ पिछले जन्म का’ की थैरेपिस्ट भी हैं। इस तरह उनकी ढाई साल की रिसर्च और अनुभव के बाद ‘राज़ पिछले जन्म का’ शो आपके सामने आ सका।

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