वैज्ञानिक की नजर अन्तरिक्ष पर टिकी है लेकिन वह यह नही जानता की -------
उसके घर में क्या होरहा है ?
वैज्ञानिक आकाश में तारों की गड़ना कर रहा है लेकिन वह यह नही जानता की -----
वह जो कमीज पहना है उसमें कितनी बटनें हैं ?
विज्ञान अन्तरिक्ष में पानी खोज रहा है और पृथ्वी पर लोगों को पर्याप्त पानी की ब्यवस्था नही है
गीता के निम्न 12 श्लोकों के माध्यमसे जो विज्ञान निकलता है उसे देखें ...........
गीता-सूत्र
2.28 , 8.16 , 13.33 , 13.19 ,15.16 , 7.4--7.6 , 14.3 ,14.4 , 13.5 , 13.6
जिसको हम कल तक जानते थे , जिसको हम आज जानते हैं और जिसको हम जाननें की कोशिश
कर रहें हैं चाहे वह एक कण हो या अन्तरिक्ष हो वह सब हमारे इन्द्रीओं की पकड़ का परिणाम है ।
मनुष्य अपनें इन्द्रीओं की क्षमता उपकरणों के विकास से बढ़ा रहा है क्योकि धीरे-धीरे मनुष्य की
इन्द्रियाँ कमजोर पड़ती जा रही हैं । अभी-अभी जापान के वैज्ञानिकों को पता चला है की एक चूहे में
सूंघनें के लिए 1000 receptor-gens होते हैं और सारे सक्रीय होते है और मनुष्य में इनकी संख्या
होती तो है 1200 लेकिन उनमें से केवल 800 ही सक्रीय होते हैं । हम क्यों अपनें इन्द्रीओं की क्षमता
खो रहे हैं ?
वैज्ञानिक अन्तरिक्ष में तारों की चालों पर अपनी पैनी नजर लगाए हुए है लेकिन यह नही जानता की
उसका बच्चा क्या कर रहा है ?
गीता कहता है जो है उसे जानो, अच्छी बात है लेकिन इतनी सी बात याद रखना --जब तक तुम उसे
कुछ जान पाओगे तबतक वह बदल चुका होगा । आनंद बुद्ध से एक बार पूछा ----भंते! परमात्मा
क्या है ? , परमात्मा के नम पर आप चुप क्यो रहते हैं ? बुद्ध कहते हैं ---बोला उसपर जाता है जो है ,
परमात्मा तो अभी हो रहा है और जो हो रहा है उसकी परिभाषा क्या होगी ?
विज्ञानं अन्तरिक्ष में पृथ्वी को खोज रहा है और विज्ञान के कारण पृथ्वी यहाँ आखिरी श्वाश ले रही है -
वैज्ञानिकों को पता है की यह पृथ्वी अब ज्यादा दिनों तक नही रह पाएगी अतः क्यों न कोई नया
ठिकाना खोज लिया जाय ?
गीता 5000 वर्ष पहले बता चुका है की जब तक पञ्च महाभूत नही होते तब तक जीव का निर्माण नही
हो सकता । पञ्च महाभूत हैं ----पृथ्वी, पानी, वायु, अग्नि, आकाश । यहाँ आकाश को आप समझिये --
आकाश का अर्थ है स्पेस [space -an electro-magnetic medium ] जो टाइम-स्पेस फ्रेम का एक
कंपोनेंट है और समय की तरह सर्वत्र है । गीता कहता है की जब पाँच महाभूत माया के अपरा प्रकृत से
तैयार होते हैं और सम्यक वातावरण बनता है तब इनमें मन,बुद्धि, अंहकार तथा परा प्रकृत से चेतना का
फुजन होता है । अपरा एवं परा प्रकृतियों के फुजेंन में आत्मा-परमात्मा का फुजेंन होता है और जिव का निर्माण होता है ।
गीता-सूत्र 13.19 , 15.16 कहते हैं --प्रकृत एवं पुरूष से टाइम-स्पेस है और यह सूत्र शांख्य दर्शन की
बुनियाद हैं ।
आप यदि वैज्ञानिक हैं तो कभी गीता के इन सूत्रों पर भी सोचना क्या ये सूत्र किसी भी तरह आधुनिक
विज्ञान की कल्पनाओं से ज्यादा स्पष्ट नहीं हैं ?
========ॐ=========
Wednesday, November 18, 2009
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