Saturday, July 24, 2010

घरेलू महिलाओं के एक महीने के काम का मोल 33 खरब रुपये

घरेलू महिलाओं के एक महीने के काम का मोल 33 खरब रुपये


नई दिल्ली. पूरे समय घर में रह कर घर संभालने वाली महिलाओं को सरकार ने भले ही जनगणना सूची में वेश्‍याओं, भिखारियों, कैदियों की श्रेणी में रखते हुए अनुत्‍पादक मान लिया हो, लेकिन सच यह है कि इन महिलाओं के काम का कोई मोल ही नहीं है। फिर भी, अगर इसे पैसों में तोला जाए तो रकम खरबों में पहुंच जाती है। मोटे अनुमान के मुताबिक घर संभालने वाली महिलाएं हर महीने परिवार के 33 खरब रुपये से भी ज्‍यादा बचाती हैं।


राजधानी में घरेलू नौकर मुहैया कराने वाली एक एजेंसी के मालिक सुमंत नेगी बताते हैं कि घर का काम-काज करने वाली एक नौकरानी महीने में कम से कम 6,000 रुपए पगार लेती है। उसके रहने और खाने की व्यवस्था भी परिवार को ही करनी होगी। रहने पर करीब 3,000 और खाने पर भी मासिक खर्च करीब-करीब इतना ही होगा। यानी उस पर कुल खर्च करीब 12,000 रुपये मासिक पड़ेगा। फिर नौकरानी केवल आठ घंटे ही काम करेगी, जिसमें एक घंटे का ब्रेक भी शामिल है। अतिरिक्त काम करने पर और भुगतान देना होगा। इसके दो हजार रुपए और जोड़ने पर कुल खर्च करीब 14,000 रुपए का होगा।


नेगी के मुताबिक दिल्‍ली में एक नौकरानी रखने पर कम से कम 14000 रुपये मासिक खर्च आएगा। अगर इस न्‍यूनतम खर्च को ही राष्‍ट्रीय स्‍तर पर औसत खर्च मान लिया जाए तो भी घरेलू महिलाओं के काम की कीमत खरबों में पहुंच जाती है। देश में 15 से 64 साल की कुल महिलाओं की संख्या 326,289,402 (2001 की जनगगणना के मुताबिक) है। इनमें 88,098,138 महिलाएं (करीब 27 फीसदी) कामकाजी हैं। 238,191,264 महिलाएं घरेलू काम करती हैं। 14,000 रुपये मासिक के हिसाब से इनके काम का मोल निकाला जाए तो रकम 333,467,769,8000 रुपए बैठती है।


सरकार के रुख का क्‍या कहिए


सेंसस के अनुसार घर में काम करने वाली महिलाएं घरेलू काम जैसे पानी भरना, खाना पकाना और बच्चों को संभालने जैसा काम करती हैं। इन्हें गैर कामगार की श्रेणी में रखा गया है। 1991 की जनगणना रिपोर्ट में घरेलू महिलाओं की तुलना वेश्याओं, भिखारियों और कैदियों से की गई है। सूची में उन्‍हें इन्‍हीं के साथ एक ही श्रेणी में रखा गया है।


सुप्रीम कोर्ट की तल्‍ख टिप्‍पणी


सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान शुक्रवार को जनगणना रिपोर्ट में गृहिणियों को वेश्याओं, भिखारियों और कैदियों की श्रेणी में रखने पर तल्‍ख टिप्‍पणी की। अदालत ने संबंधित अफसरों को कड़ी फटकार लगाते हुए नाराजगी जताई और गृहिणियों की भूमिका को अनमोल बताया। जस्टिस गांगुली ने कहा कि यह पक्षपात काफी स्पष्ट रूप से जनगणना के काम में दिखाई दे रहा है। अथारिटीज का यह रवैया पूरी तरह असंवेदनशील है। जस्टिस एके गांगुली और जस्टिस डीएस सिंघवी की पीठ एक महिला की सड़क दुर्घटना में हुई मौत के मामले की सुनवाई कर रही थी। मुआवजा बढ़ाने के मुद्दे पर हुई बहस के दौरान यह तथ्य उजागर हुआ। अदालत के अनुसार सरकार का यह रुख असंवेदनशील और निंदनीय है।


महिलाएं भी नाराज


जिस देश में महिलाएं राष्ट्रपति जैसा पद संभाल रहीं हों, वहां इस तरह का व्यवहार घोर आपत्तिजनक है। राष्ट्रीय महिला आयोग इस बारे में ठोस कार्रवाई पर विचार कर रहा है।


- राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य यास्मीन अबरार

जनगणना रिपोर्ट से इस अंश को तत्काल निकालना चाहिए और फिलहाल चल रही जनगणना की रिपोर्ट तैयार करते समय सुनिश्चित किया जाए कि यह गलती फिर न हो। उन्होंने बताया कि इस बारे में आयोग की सोमवार को बैठक आयोजित की गई है, जिसमें इस मामले में आगे की कार्रवाई पर निर्णय लिया जाएगा।


- दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष बरखा सिंह



`कोई इस तरह की टिप्पणी कैसे कर सकता है। जो भी महिलाओं को नौकरानियों, वेश्याओं, भिखारियों और कैदियों की श्रेणी में रखता है, उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया है। बेहतर होगा कि उसका इलाज करवाया जाए।`


स्वाति सिंह, गृहिणी, नई दिल्ली

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