Thursday, July 29, 2010

वैवाहिक सुख बढ़ाता है - संभोग व्रत

हिन्दू संस्कृति और धर्म ग्रंथों में चार पुरुषार्थ बताए गए हैं - धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष। मानव के जन्म से लेकर मृत्यु तक इन पुरुषाथों को पाने के लिए अनेक संस्कार और धार्मिक व्यवस्थाएं नियत की गई है। इन पुरुषार्थों में काम का महत्व वैवाहिक संस्कार द्वारा गृहस्थ जीवन में बताया गया है। लेकिन वैवाहिक जीवन में कोई व्यक्ति भोगी या विलासी होकर जीवन की अन्य जिम्मेदारियों से दूर न हो जाए। इसलिए प्राचीन ऋषि-मुनियों ने ऐसे व्रत का पालन करने का विधान बनाया, जिससे व्यक्ति का वैवाहिक जीवन संयमित, सुखी और जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए पूरा हो। यह व्रत है - संभोग व्रत।

इस व्रत का पालन हिन्दू पंचांग के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा यानि एकम और पंचमी तिथि को किया जाता है। इस व्रत में मुख्य रुप से भगवान सूर्यदेव की पूजा की जाती है। जो पंचदेवों में शामिल है। सूर्यदेव निरोग रखने वाले और आत्मज्ञान देने वाले देव हैं।

प्रात: स्नान कर पूरी पवित्रता के साथ सूर्य की प्रतिमा का गंध, फूल, अक्षत सहित १६ तरीकों से पूजन और उपासना की जाती है। दिन में एक बार बिना नमक का भोजन करें।

रात्रि में पति या पत्नी के साथ शयन करने पर भी ब्रह्मचर्य का पालन करें। शारीरिक संबंध या अन्य भोग क्रियाओं से दूर रहें।

इस व्रत के पालन से व्यक्ति ऊर्जावान, स्वस्थ, सबल रहता है और लंबे समय तक वैवाहिक सुखों की प्राप्ति कर धार्मिक दृष्टि से पुण्य का भागी भी बनता है।

0 comments:

Post a Comment