Tuesday, March 30, 2010

रियल लाइफ़ : मौत की उड़ान

यह एक ऐसे जांबाज पायलट की सच्ची कहानी है, जिसने ऐसे क्षणों में भी अपना विवेक नहीं खोया, जब मृत्यु उसके बिल्कुल सामने थी। अपने हौसले और सोच के बल पर उसने अपने समेत 170 यात्रियों को सकुशल धरती पर उतार दिया...



जहाज अकाश में उठ चुका था कि विमान-चालक को वायरलैंस पर संदेश मिला, ‘तुम्हारे जहाज़ का लैंडिग-गियर जल गया है। तीनों पहियों के टायर भी ज़ल गए है।’



‘ तुम क्या करना चाहते हो?’



रेड़ियों पर प्रश्न पर प्रश्न पूछे जा रहे थे, किंतु आई गोर वज़क मौन था। टीयू 112 का पायलट आईगोर वज़क एक सौ सत्तर यात्रियों को लिए पांच हज़ार मील की लंबी उड़ान के लिए प्रस्थान कर चुका था। वह अभी कठिनता से डेढ़ हज़ार गज़ ही चला था और मास्को अभी पांच हज़ार मील दूर था।



तभी हवाई-अड्डे के कंट्रोल-रूम से आवाज़ आई, ‘तुम्हारे जहाज़ का लैंड़िग-गीयर जल गया है और तीनों टायर भी ज़ल गए है।’ किंतु अब जहाज़ तेज़ रफ्तार हो चुका था। ‘तुम्हारा क्या फैसला है?’ कंट्रोल-रूम से ऑपरेटर पूछ रहा था। पायलट अब भी चुपचाप था। वह अकेला नहीं था। उसके साथ 170 लोगों का जीवन जुड़ा हुआ था। क्या जहाज़ को उतारा जाए? पायलट ने सोचा, किंतु पहिए ख़राब हो चुके हैं। यात्रियों को इस बात का पता ही न था कि मृत्यु उनके कितने समीप आ गई है।’



कंट्रोल-रूम में बैठे हुए लोगों ने सुना, ‘हम उड़ान जारी रखेंगे,’ जहाज़ का पायलट एक फ़ैसला कर चुका था। टीयू112 आकाश में बहुत ऊंचा उठ चुका था। अभी पूरे नौ घंटे की उड़ान बाक़ी थी। भय और आशंका के नौ घंटे। फ़ैसला कर लेने के बाद विमान-चालक के हाथ एक क्षण भी नहीं कांपे। पाइलेट जहाज़ उड़ा तो रहा था, पर आने वाले ख़तरे के विचारों से उसका दिमाग़ भरा हुआ था। शायद उसके हाथ अपने आप पुरज़ों पर चल रहे थे। समय बीतता जा रहा था। धरती बड़ी तेज़ी से पीछे छूटती जा रही थी। आई गोर वज़क संभलकर बैठ गया। निर्णयात्मक समय आने वाला था। कुछ ही देर बाद जहाज़ को उतरना था और उस क्षण के बारे में वह पूरे नौ घंटे से सोच रहा था। बिना पहियों के जहाज़ को धरती पर कैसे उतारा जाए?



उधर मास्को के हवाई अड्डे पर भी अफ़सरों के दिमाग़ में बार-बार यहीं प्रश्न था कि बिना पहियों के जहाज़ को कैसे धरती पर उतारा जाएगा? सबकी नज़रें आकाश की ओर उठी हुई थीं। उन उठी हुई नज़रों में दो आंखें डाइना की भी थीं। हां, आई गोर वज़क की पत्नी डाइना उसी हवाई अड्डे पर काम करती थी। उसकी आंखों में आंसू छलक आए थे।



‘टीयू112 उतरने ही वाला है। एंबुलैंस और फायर-ब्रिगेड के इंजन तैयार रहें,’ वज़क चाहता था कि ईंधन समाप्त हो जाए ताकि दुर्घटना होने पर भी जहाज़ में धमाका न हो। इसलिए उसने हवाई-अड्डे के चक्कर लगाने शुरू कर दिए। वज़क ने सोचना बंद कर दिया और धीरे से बाएं लीवर को दबा दिया। आगे के पहिए ने धीरे से धरती को छू लिया था। अब दूसरा पहिया भी धरती पर दौड़ रहा था। वह अपनी सारी ताकत से जहाज़ को उसी ऊंचाई पर उड़ाने का प्रयत्न कर रहा था। यदि जहाज़ थोड़ा-सा भी एक ओर झुक जाता है, तो टूटा हुआ पहिया पक्की धरती से टकराते ही जहाज़ में आग लग सकती है। उसने जहाज़ का इंजन बंद कर दिया। जहाज़ की गति कम होती गई और नंगे पहियों ने धरती को आख़िर छू ही लिया। घायल पक्षी-सा टीयू 112 जैसे थक कर रूक गया। ज़िंदगी जीत गई थी। उसने मौत को पराजय दे दी थी।



उठी हुई आंखें..



सबकी नजरें आकाश की ओर उठी हुई थीं। उन उठी हुई नÊारों में दो आंखें डाइना की भी थीं। हां, आई गोर वजक की पत्नी डाइना उसी हवाई अड्डे पर काम करती थी। उसकी आंखों में आंसू छलक आए थे। टीयू112 उतरने ही वाला है था॥।


"तो दोस्तों है ना डर के आगे जीत "

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