Tuesday, April 20, 2010

तो हजारों साल जी सकता है इंसान

radhakrishnayogi_400
चाहे जीवन में दुखों के हिमालय खड़े हों, पर इंसान को जिंदगी का मोह इतना है कि वह लाखों-लाख साल जीना चाहता है। यह आज की ही बात नहीं है मनुष्य जाति का समूचा इतिहास इस बात का गवाह है। जब तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान प्रकट हुए तब भी इंसान ने बजाय सुख-शान्ति मांगने के लम्बी उम्र ही मांगी। बेचारा विज्ञान तो ठहरा सेवक, सो वह भी होंश संभालते ही मनुष्य की इस चिर अभिलाषा की पूर्ति में प्राण-पण से जुटा हुआ है।

अब विज्ञान इस नतीजे पर पंहुचा है कि बुढ़ापा या मृत्यु कोई अनिवार्य घटना नहीं है। विज्ञान का मानना है कि बुड़ापा एक रोग है और मृत्यु इस लाइलाज बनी हुई बीमारी का अंतिम परिणाम। विश्व को भारत की अनमोल देन, योग-विज्ञान का एक सुनिश्चित सिंद्धात है कि किसी भी प्राणी का जीवन स्वांस तथा प्राणों पर निर्भर होता है। यही कारण है कि अत्यंत धीमी और लयात्मक स्वांस लेने वाला कछुआ ५०० वर्ष से अधिक की आयु पाता है। अब यदि मनुष्य के हाथ कोई एसी युक्ति लग जाए जिससे वह अपनी स्वांस और प्राणों पर नियंत्रण पा सके तो मनुष्य अतिदीर्घ जीवन की अपनी इच्छा को भी पूर्ण कर सकता है। इस क्षेत्र में किये गए प्रयासों में यथा प्रयास यथा परिणाम के नियमानुसार सफलता मिल भी रही है। योग और अध्यात्म वह सुप्रीम साइंस है, जिसके बल पर प्राचीन ऋषि-मुनि हजारों वर्षों तक सशरीर जीवित ही नहीं पूर्ण क्रियाशील भी रहते थे। इस विज्ञान के बल पर वे अपने शरीरा की नई कोशिकाओं का बनना जारी रखते थे। जब शरीर में नव कोशिकाओं का बनना रुक जाता, वहीं से बुढ़ापा और मौत की उल्टी गिनती शुरू हो जाते हैं।

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