Saturday, May 1, 2010

शादी से पहले वे ऐसे तो न थे.....

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अधिकांश लोगों का यह अनुभव होगा कि विवाह होने के बाद प्रेम-स्नेह पहले जैसा नहीं रहता। अरेंज मैरिज ही नही, मनपसंद जोडिय़ों की भी यही दशा है। बड़े आश्चर्य का विषय है कि, जिन्होंने अपने प्रेमी से विवाह करने के लिये माता-पिता, परिवार तथा समाज सभी का विरोध किया व सहा भी, वे ही शादी के बाद एक-दूसरे के लिये सर्वाधिक अरुचि के पात्र बन जाते हैं। क्या कारण है कि शादी के बाद इंसान को एक दूसरे की कमियां ही नजर आती हैं। शादी से पहले या तुरंत बाद में जो जोड़ीदार आकर्षण का केन्द्र लगता था अचानक बदल कैसे जाता है ?

हकीकत- इस विषय पर गहन चिंतन किया जाए और निष्पक्ष दृष्टि रखकर मनोवैज्ञानिक नजरिये से सोचा जाए तो सारी हकीकत सामने आ जाती है। हकीकत यह है कि शादी के बाद कोई इंसान नहीं बल्कि व्यक्ति का देखने का नजरिया बदल जाता है। पहले जो व्यक्ति अपने साथी की जिन खूबियों से प्रभावित और आकर्षित था, अब वे उसके लिये पुरानी पड़ चुकी होती हैं। दूसरी तरफ नवीनता के आकर्षण में जिन कमियों को अनदेखा किया जा रहा था, अब वे उभर कर सामने आ जाती हैं। दूर के ढोल सुहावने लगने वाली कहावत यहां पूरी तरह से लागू होती है। जो ढोल दूर से बजने के कारण अति मधुर लग रहे थे, अब रात दिन कान के पास बजने के कारण बड़े बेसुरे ही नहीं कर्कश भी लगने लगते हैं।

शादी के महान एवं अनमोल रिश्ते की मधुरता को यदि बनाए रखना हो तो दो बातें बड़ी कारगर व कीमती हैं। पहली यह कि कमजोरियां और गलतियां प्रत्येक इंसान का मानवीय स्वभाव होती हैं। किसी को अपने सांचे में ढालने की कोसिश करना ना तो उचित है और न ही संभव ही है। दूसरी काम की बात यह कि एक-दूसरे के साथ बिताए जाने वाले समय की क्वालिटी पर ध्यान दें न कि क्वांटिटी पर। रिश्ते की मधुरता दोनों की योग्यता और समझ पर ही निर्भर होती है।

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