गीता-श्लोक 4 . 7 - 4 . 8 कहते हैं-------
धर्म के उपर से अधर्म की चादर उठानें के लिए एवं साधू-पुरुषों की रक्षा करनें के लिए परमात्मा निराकार
से साकार रूप में प्रकट होता है।
मीरा को मथुरा में रूकनें नहीं दिया गया, सुकरात को जहर दिया गया, महाबीर के कानों में कीलें ठोकी गयी, बुद्ध के उपर जूते फेके गए, जेसस को शूली पर चढाया गया, गलीलियो को घर में कैद किया गया, श्री राम की सीता का हरण हुआ और श्री कृष्ण को ब्रज-भूमि छोड़ कर द्वारका जाना पडा .....आखिर यह सब किसनें और क्यों किया? यह सब करनें वाले कोई और न थे , हम - आप ही थे।
लोगोंको साधू पुरुषों से क्या परेशानी है? क्यों लोग उनको देखना नहीं चाहते? साधू पुरूष तो किसी को
कुछ नहीं कहते।
सत पुरूष राज धर्मी पदार्थ की तरह होते हैं जिनके रोम-रोम से चेतन मय विकिरण होता रहता है जो लोगों के अंदर पहुँच कर उन्हें बेचैन करता है।
भोग एवं अंहकार से सम्मोहित लोग सत के विकिरण को सह नहीं पाते उन्हें बेचैनी होती है और यह बेचैनी उनको विवश करती है - सत पुरुषों को पेशान करनें के लिए ।
सत पुरूष के पैर से पैर मिलाकर चलना कठिन काम है लेकिन सत पुरूष के न रहनें पर उनको पूजना अति आसान होता है ।
सत की राह संसार से लम्बवत यात्रा है जो भोग के गुरुत्वाकर्षण के बिपरीत की यात्रा है अतः इस पर चलना कठिन है और संसार की यात्रा समानांतर यात्रा है जो अति आसान यात्रा है ।
समानांतर यात्रा को लम्बवत यात्रा में बदलना ही साधना है ।
======ॐ========
Thursday, November 19, 2009
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