आग में तपनें के बाद सोना अपनी चमक बिखेरता है और मनुष्य ध्यान से बुद्ध बनकर लोगों को आकर्षित करता है।
ध्यान के रहस्य में डूबने के पहले हम गीता के 11 श्लोकों को देखते हैं जिनके आधार पर ध्यान - रहस्य को जानना
कुछ आसान सा हो सकता है ।
1- shlok ...18.49 आसक्ति रहित कर्म से सिद्धि मिलती है ।
2- श्लोक...18.50 कर्म-सिद्धि ज्ञान-योग की परा निष्ठा है ।
3- श्लोक...18.54 परमात्मा में डूबा परा-भक्त होता है ।
4- श्लोक...18.55 परा भक्त परमात्मा मय होता है ।
5- श्लोक...6.29,6.30,9.29 परा भक्त के लिए परमात्मा निराकार नहीं रहता ।
6- श्लोक...7.3,7.19,12.5,14.20 परा भक्त दुर्लभ होते हैं।
कर्म,भक्ति एवं परमात्मा के सम्बन्ध में गीता के कुछ चुनें गए श्लोकों को आप अभी देखे अब इन पर सोचनें
का काम आप का है और यही सोच आप को बुद्धि-योग में प्रवेश करा सकती है ।
माध्यमों से होनें वाली भक्ति अपरा-भक्ति होती है , अपरा भक्ति का फल है , परा भक्ति जो अनुभूति अब्याक्तातीत
है उसे प्रदान करती है और परा-भक्त बुद्ध होता है । परा-भक्ति तन,मन एवं बुद्धि से होती है जिसको देखा तथा
समझा जा सकता है लेकिन जब वही भक्त परा में प्रवेश कर जाता है तब उसका तन,मन एवं बुद्धि अपरा के
द्वार पर रह जाते हैं , उसके पास न तन होता है, न मन होता है और न वह बुद्धि होती है , उसकी चेतना का
फैलाव इतना अधिक हो जाता है की चेतना ब्रह्म से मिल जाती है । चेतना का आंशिक मिलन के समय वह
योगी समाधि में होता है और जब समाधि टूटती है तब वह कस्तूरी मृग की तरह बेचैन हो कर उस समाधि के
अनुभव को पुनः पानें के लिए भागनें लगता है ।
====ॐ========
Thursday, November 19, 2009
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