गीता-मोती में रुची रखनें वाले हमारे एक मित्र जानना चाहते हैं -------
क्या आप मीरा , नानक एवं कबीर को पहचान लेंगे यदि वे आप को मिल जाएँ तो ?
आप की आतंरिक यात्रा कहाँ तक पहुँची है ?
मेरे प्यारे मित्र !
यहाँ कौन किसको पहचानता है ? और कितना पहचानता है ? यदि पहचान सही हो तो प्रश्न क्यों उठें और
यदि पहचान सही हो तो विबाद क्यों खडा हो ? यहाँ सभी दूसरे को पहचाननें में जुटे हैं कोई अपनें को नहीं
पहचानना चाहता। जब तक हम स्वयं को नहीं पहचानते तब तक दूसरे को पहचानना सम्भव नहीं ।
जब तक हमारे में पहचाननें की ऊर्जा बहती रहेगी तब तक हम उसे नहीं पहचान सकते , पहले संदेह जिस
ऊर्जा से पैदा हो रहा है उसे रूपांतरित करनें के बारे में सोचना चाहिए ।
यदि मीरा , नानक, कबीर मुझे मिलें तो मैं उन्हें नहीं पहचान पाउँगा ? यह ध्रुव सत्य है , जब तक मेरे
ह्रदय में बहनें वाली ऊर्जा की आबृति उन लोगों के हृदयों की ऊर्जा की आबृति के बराबर नहीं होती तब तक मैं
उन लोगों को कैसे पहचान सकता हूँ , मीरा को पहचान नें के लिए मीरा जैसा ह्रदय चाहिए , नानक को पहचाननें के लिए नानक जैसा ह्रदय चाहिए और कबीर को समझनें के लिए कबीर जैसा ह्रदय चाहिए ।
नानक पंजाब से पूरी की यात्रा में कुछ दिन कबीर के साथ काशी में गुजारे थे लेकिन उस दौरान उनमें कोई
वार्ता न हो पाई । नानक के जानें के बाद कबीरजी का एक शिष्य पूछा, गुरुजी! हम लोग प्रसन्न थे आप दोनों के मध्य जो वार्ता होती उसको सुननें के लिए लेकिन ऐसा मिला हुआ अवसर हाँथ से निकल गया , इस बात पर हम लोगों को दुःख जरुर है । कबीरजी उस शिष्य की ओर देखा और भरी आंखों एवं भरी आवाज में बोले ,
बेटा! वार्ता तो हुई थी ....जो उनको बोलना था , वे उनको बोले , मैं सूना और जो मुझे कहना था वह मैं कहा और वे सुने
यदि तुम सब न सुन पाये तो मैं क्या कर सकता था ?
यहाँ कौन किस को पहचानता है , क्या पत्नी पति को पहचानती है ? क्या पति अपनें पत्नी को पहचानता है ?
क्या बेटा अपनें माँ- पिता को पहचानता है ?
श्री राम चौदह साल जंगल में रहे उनका साथ कितनें लोग थे , उनका साथ देनें वाले कितनें लोग थे? श्री राम
को पहचाना जंगल के पशु- पक्षियों नें , उनका साथ निभाया उन्होंनें हम लोग तो तब भी दर्शक थे और आज
भी दर्शक बनें हुए हैं , युग बदल गया लेकिन हम लोग आज भी वहीं बैठे हैं ।
मेरे प्यारे मित्र ! मैं कोई गुनातीत गीता योगी नहीं हूँ मैं एक टेक्नोक्रेट था और पिछले पच्चास वर्षों तक संसार के सम्मोहन में गुजारा है और अब गीता के माध्यम से आप जैसे प्रेमियों के संपर्क में हूँ ।
आप मेरी भाषा पर ध्यान न दे , आप अपनें साथ गीता को रखें और अपनें को गीता में खोजें ऐसा करते रहनें
से आप एक दिन गीता के परम श्री कृष्ण को भी पहचान लेंगे और धन्य हो उठेगें ।
मैं अपनें लेखों में गीता के श्लोकों को नहीं देता मात्र उनका सन्दर्भ अंक देता हूँ जिस से आप स्वयं उन श्लोकों
को गीता में पकडनें का प्रयत्न करें । मैं तो मात्र एक माध्यम हूँ जो आप और गीता को जोडनें का काम
कर रहा है । आप मेरी आतंरिक यात्रा की लम्बाई - चौडाई जानना चाहा है जिसको मैं अगले अंक में दूंगा।
परम श्री कृष्ण आप को अपनें से जोड़े रखें ।
====ॐ=========
Thursday, November 19, 2009
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