Thursday, November 19, 2009

अपरा भक्ति के माध्यम - भाग ..2

स्मृतियाँ आगे नहीं बढनें देती और आगे सरकते रहनें का नाम जीवन है ।
स्मृति में वह है जो गुजर चुका है और हमें अपनें को उसके लिए तैयार करना है जो आनें वाला है तथा जो अज्ञेय है ।
प्रोफेसर आइंस्टाइन कहते हैं --ज्ञान दो प्रकार का है ; एक वह जो किताबों से मिलता है और दूसरा वह जो चेतना से
बूँद-बूँद टपकता है - पहला ज्ञान मुर्दा ज्ञान है तथा दूसरा सजीव ज्ञान है । मन में स्थित सूचनाएं वह हैं जो गुजरे
वक्त की हैं इनके आधार पर हम आगे की सोच नहीं पैदा कर सकते और यदि इनके आधार पर अगला कदम
रखते हैं तो वह कहाँ पडेगा कुछ सोचा नहीं जा सकता। जीवन में हर पल नया है यहाँ कुछ भी पुराना नहीं अतः
जीवन की हर सोच भी नयी होनी चाहिए , इस बात को कुछ लोग कहते हैं --live moment to moment . लेकिन
यह बात लोगों के मन में भ्रम पैदा करती है । live moment to moment का अर्थ है ...हर पल होश मय होना
चाहिए।
गीता में श्री कृष्ण अपनें 556 श्लोकों में से 100 से भी कुछ अधिक श्लोकों के माध्यम से स्वयं को परमात्मा
बतानें के लिए लगभग 150 उदाहरणों को देते हैं लेकिन अर्जुन के ऊपर इनका कोई असर नहीं पड़ता ।
अर्जुन गीता में अंत तक सब कुछ स्वीकरते तो हैं लेकिन ऊपर ऊपर से , दिल से नहीं क्योंकि वे तामस
गुन के प्रभाव में हैं और मोह- भय प्रभावित ब्यक्ति ऐसा ही रहता है।
अपरा - माध्यमों का काम है अन्तः करन में श्रद्घा की लहर पैदा करना और जब ऐसा होता है तब परा भक्ति
उदित होती है । अपरा अर्थात वह जो तन,मन एवं बुद्धि से हो और परा वह जिसमें जिस्म के कण-कण में
चेतना का संचार होता हो । अपरा भक्ति परा का द्वार है और यह द्वार तब खुलता है जब मन -बुद्धि स्थिर हों ।
====ॐ=======

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