Thursday, November 19, 2009

परम शून्यता क्या है ?

क्या आप ऐसे ब्यक्ति की कल्पना कर सकते हैं ?
जिस को संसार की कोई बस्तु आकर्षित न करती हो , बुद्धि में कोई संदेह न आता हो , जो कामना क्रोध लोभ भय मोह एवं अंहकार से अप्रभावित रहता हो , जो कभी स्वप्न न देखता हो जिसका मन भूत एवं वर्तमान की स्मृतियों से खाली हो-- तो वह ब्यक्ति कैसा होगा ? महावीर 2500 वर्ष इशा पूर्व में निर्ग्रन्थ होनें की बात कही थी और एक जर्मन विचारक विल्हेम रेक महावीर की बात को 20 वी शताब्दी के मध्य में आकर दुहराया , क्या निर्ग्रन्थ ब्यक्ति ठीक वैसा होता होगा जैसी बात ऊपर बताई गई है ? सन 1950 के आस-पास मनोवैज्ञानिक सी जी ज़ंगकहते हैं ----मध्य उम्र के लोगों में शायद ही कोई ऐसा ब्यक्ति मिले जिसके अंदर परमात्मा की सोच न हो ।
गीता श्लोक 2.55--2.72 , 14.21--14.27 तक में ऐसे ब्यक्ति की बात बताता है जिसकी चर्चा उपर की गयी है ।
यदि आप निर्ग्रन्थ होना चाहते हैं जो ठीक वैसा होता है जैसे ब्यक्ति के बारे में ऊपर बताया गया है तो आप को गीता - शरण में जाना पडेगा और जब आप निर्ग्रन्थ हो जायेंगे तब आप हर पल ॐ धुन में परम आनंदित स्वयं को पाएंगे और ॐ ही परमात्मा है [गीता-9।17,10।25,17।23 ] ।
=======ॐ=====

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