Thursday, November 19, 2009

गंगा सिसक रही है

गंगा को मनुष्य पृथ्वी पर क्यों लाया ?
गंगा को कौन प्रदूषित कर रहा है ? पशु , पंक्षी या कोई और जीव या मनुष्य स्वयं ।
गंगा को लानेवाला अपनी कामना पूर्ति के लिए गंगा का प्रयोग किया और आज हम-आप भी वही काम कर रहे हैं,क्या गंगा कोदेनेवाला यह नही समझ सका की इसका प्रयोग कैसे किया जानें वाला है ?
गंगा में अनेक प्रकार के जीव निवास करते हैं , गंगा को बरबाद नही करते , वे गंगा को निर्मल करनें में
दिन-रात जुटे हुए हैं, पर मनुष्य क्या कर रहा है ?
हमलोग गंगा में अपनों की अस्थियाँ डालते हैं और सोचते हैं की ऐसा करनें से उनको मुक्ति मिल जायेगी जो जीवन भर गंगा को प्रदूषित करते रहे हैं , क्या गंगा उनको नही पहचानती ? गंगा में पल रहे जीवों को हमलोग खाते हैं जिनके अंदर मनुष्य के अस्थियों का रस होता है अर्थात हमलोग अपनों के अस्थियों का अप्रत्यक्ष्य रूप में सेवन करते हैं ।
गंगा को मुक्ति दायिनी कहते हैं यदि ऐसा है तो फ़िर गंगा में रहनें वाले जीव अवश्य मुक्ति के पात्र होनें चाहिए पर उनको तो हमलोग खा जाते हैं । सोलहवी शताब्दी से आज तक जिस गति से विज्ञानं विकास किया है ठीक उसी गति से गंगा का प्रदुषण हुआ है अर्थात जैसे -जैसे मनुष्य का मन प्रदूषित हुआ , वैसे - वैसे गंगा प्रदुसित हुई ।
विज्ञानं का जन्म हुआ ज्ञान पानें के लिए लेकिन मनुष्य इसके माध्यम से ज्ञान के ऊपर अज्ञानकी चादर
डालनें लगा ।
गंगा को यदि आप बाहर से देखेंगे तो आप को मैली दिखेगी क्योंकि इन्द्रियां जानती ही नही हैं की सत क्या है ? सत चेतना से पकड़ा जाता है । गंगा तब भी निर्मल थी और आज भी निर्मल है उनके लिए जिनका अन्तः कर्ण निर्मल है । गंगा नदी नही है यह तो साधना-श्रो़त है और साधना-श्रोत मैला कैसे हो सकता है ?
गंगा घाट पर बैठ कर यदि आप चाहें तोवह सब पा सकते हैं जिनकी तलाश आप कर रहे हैं ।
गंगा शरणम् गच्छामि ।
=====ॐ=======

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