Thursday, November 19, 2009

फ़िर यह क्या है ?

यह बात सब के मन-बुद्धि में एक बार नहीं अनेक बार दिन में आती है लेकिन हम सब चूक जाते हैं । जब
यह बात आए की यह क्या है ? उस समय उस बिषय/ बस्तु पर नहीं सोचना चाहिए बल्कि उस पर सोचना चाहिए जिससे यह बात उपज रही होती है । जब हमारे अन्दर यह बात आती है --यह क्या है ? उस समय हमारे अन्दर उस बिषय या बस्तु से मिलती- जुलती जानकारी हमारे अन्दर होती है , यह क्या है ? स्वयं में एक भ्रम का रूप है और भ्रमित बुद्धि में भ्रम का इलाज नहीं होता । गीता कहता है [गीता- 2.16]- सत्य भावातीत है ---नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः यह वही बात है जिसको जेकृष्णामूर्ति कहते हैं ----choiceless awareness और जेसस क्राइस्ट कहते हैं ---judge ye not तथा गीता का मूल-मंत्र --सम-भावयोग का आत्मा भी भावातीत की स्थिति ही है ।
पिछले एक साल में गीतामोती एवं गीता तत्त्व विज्ञान के माध्यम से हम आप लोगों से जुड़े हुए हैं और
अभी तक लगभग दो सौ लेखों से हमने आप को गीता के आधार पर उन असत्यों को दिया जिनसे आप को
सत्य की भनक मिल सके लेकिन यहाँ जब श्री राम , श्री कृष्ण जैसे अवतार तथा वशीष्ट , कपिल मुनि
जैसे ऋषि असफल हो गए और परमहंस रामकृष्ण , योगानंद , आदि गुरु शंकराचार्य जैसे लोग असफल
हो कर गए तो फ़िर मेरा यह प्रयत्न तो कोई स्थान नहीं रखता लेकिन फ़िर भी कुछ करते रहना में कुछ तो है ही ।
गीता [गीता-श्लोक 2.42-2.44 तक तथा 12.3-12.4 ] कहता है -------
ब्रह्म की अनुभूति मन-बुद्धि से परे की है और एक मन-बुद्धि में राम- काम को एक साथ रखना सम्भव नहीं ---बस इतनी सी बात यदि अन्दर अपनी जगह बनाले तो समझना होश का आगमन हो चुका है ।
====ॐ=====

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