Thursday, November 19, 2009

मेरी गहराई क्या है ?

हमारे एक मित्र जानना चाहते हैं -----आप की आतंरिक यात्रा कहाँ तक पहुँची है ?
प्रिय मित्र !
ह्रदय में अब्यक्त भाव की लहरे उठती हैं और जब इन लहरों का संपर्क मन- बुद्धि से होता है तब यह
भावातीत अब्यक्त भाव निर्विकार न रह कर सविकार हो जाता है । जब तक निर्विकार भावों की लहरें
ह्रदय में रहती हैं इनका संचालन आत्मा- परमात्मा से होता रहता है क्योंकि आत्मा- परमात्मा का इस देह में केन्द्र ह्रदय है लेकिन जब ये लहरें मस्तिष्क में पहुंचती हैं तब इनका संचालन गुणोंके पास आजाता है ।
ह्रदय प्रीति आधारित है और मस्तिष्क तर्क आधारित । तर्क की ऊर्जा संदेह से निकलती है --जितना गहरा
संदेह होगा , उतना गहरा तर्क होगा और फलस्वरूप उतना ही गहरा चिंतन होगा। क्या आप समझते हैं की
संदेह से भरीबुद्धि सत्य को पकड़ सकती है ? यह असंभव है क्योंकि भ्रमित बुद्धि में मात्र प्रश्न होते हैं , प्रश्नों
का हल नहीं होता ।
आज के विज्ञान का आधार संदेह है , वह वैज्ञानिक उतना ही बड़ा वैज्ञानिक होगा जितना बड़ा उसका संदेह होगा ।
क्वांटम मेकैनिक के नोबल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक मैक्स प्लैंक कहते हैं ---विज्ञान प्रकृति को कभी नहीं
पकड़ सकता । प्रकृति सत्य है और सत्य को जाननें के लिए संदेह नहीं श्रद्घा चाहिए जो विज्ञान के पास
नहीं है ।
मेरे प्यारे मित्र ! माप - तौल में रस तो है ----ऐसा लगता है लेकिन इस रस में अमृत की बूंदे नहीं होती , इसमें बिष का बीज होता है । एक बात सोचना -----जब रहना ही है तो अनंत में क्यों न रहा जाए क्यों सिकुड़ कर स्व निर्मित पिजडे में रहें जो एक भ्रम की उपज है ।
मैं कभी अपनी गहराई जाननें की कोशीश तो किया नहीं और जब तक चाहता रहा एक मिनट के लिए भी
चैन न था । अब तो मस्त हूँ और सब की मस्ती के लिए सब को कहता हूँ ---अब और कितना और भाग
लेगा आजा करले कुछ विश्राम , गीता में ।
====ॐ======

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