Thursday, November 19, 2009

ध्यान में क्या घटित होता है --भाग १

ध्यान मन-बुद्धि से परे की उड़ान है जहाँ चेतना का पूर्ण फैलाव होता है और देह में इन्द्रियाँ,मन, बुद्धि तथा अन्य तत्व नीर्विकार स्थिति में आ जाते हैं ।
मनुष्य मात्र एक ऐसा प्राणी है जिसका जीवन मार्ग एक अंडाकार है जिसमें दो केन्द्र हैं--भोग एवं भगवान्।
मनुष्य दो मार्गी होनें के कारण हमेशा तनाव में रहता है। मनुष्य जब भोग में पहुंचता है तब परमात्मा की स्मृति उसे वहाँ रूकनें नहीं देती और जब भगवान् में रमना चाहता है तब भोग का आकर्षण उसे अपनी ओर खीचता है ।
मनुष्य एक रेडीओ सेट की तरह से है जो भोग की संबेदनाओं को तो पकड़ता ही है लेकिन परमात्मा की भी संबेदनाओं को पकड़ सकता है ।
वैज्ञानिकों की खोज बताती है ----ध्यान में डूबे ब्यक्ति के अंदर ऊर्जा की आब्रिती [frequency] दो लाख प्रति सेकंड हो जाती है जबकि एक सामान्य ब्यक्ति में यह तीन सौ पचास होती है। जब आब्रिती दो लाख से उपर जानें लगाती है तब वह ध्यानी अपनें को शरीर से बाहर होनें जैसा अनुभव करनें लगता है।
ध्यान जैसे -जैसे आगे बढता है अन्तः करन में शून्यता भरनें लगती है । शून्यता जब अपनें शिखर पर पहुंचती है तब आत्मा शरीर में गुणों से मुक्त हो जाता है । तंत्र शास्त्र में इस स्थिति को चक्रों की पकड़ से आत्मा का आजाद होना कहा जाता है ।
जब परम शून्यता आती है तब शरीर के कण-कण से आत्मा आजाद होता है और इसमें जो ध्वनी निकलती है उसे झेन परम्परा में ध्वनि रहित ध्वनि [soundless sound] कहते हैं।
ध्यान में पभु की छाया पानें के लिए समाधि से गुजरना पड़ता है और गीता कहता है की ऐसे ब्यक्ति
दुर्लभ होते हैं ।

=====ॐ=======

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