Thursday, November 19, 2009

एक और संसार है - 2

मनुष्य - सभ्यता को समझनें के लिए यदि पिछले 500-800 वर्षों के इतिहास में मिश्र की पिरामिड्स से
सिंध घाटी की सभ्यता तक, मेसो अमेरिका सभ्यता से मेसोपोतानियन [बैबीलोन - सुमेरु] सभ्यता तक में
देखनें से यह स्पष्ट होता है पहले परमात्मा से जुडनें के अनेक मार्ग थे लेकिन भोग पर चलनें के सिमित मार्ग थे ।
विज्ञान के विकास के साथ -साथ पिछले सौ वर्षों में भोग के साधनों का फैलाव ऐसा हुआ है जिससे पूरा संसार भोग मय हो उठा है । विज्ञान की खोजों का प्रयोग दो कामों के लिए हो रहा है; एक भोग के लिए और दूसरा विनाश के लिए । यह देखकर हैरानगी होती है की जो देश वैज्ञानिक स्तर पर जितनें अधिक आगे हैं वहां के लोग उतने ही अधिक भयभीत हैं--क्या कारण है ?
आज विकसीत देश अन्तरिक्ष में पृथ्वी तलाश रहे हैं क्योंकि उनको इस पृथ्वी के अस्तित्व पर संदेह हो रहा है । यदि कोई नई पृथ्वी मिल भी गयी तो वह कितनें दिन सुरक्षित रह पायेगी ? इस बात पर आज वे लोग नहीं सोचते जो इस पृथ्वी को नष्ट कर रहे हैं। आज का युग विज्ञान का युग है जो तेज गति से भोग युग में
परिवर्तित हो रहा है । अगर भोग साधनों का इस गति से विकास होता रहा तो आगे सौ वर्षों में क्या होगा --
इसकी कल्पना करना भी कठिन होगा ।
बुद्ध - महावीर के वैराग्य का मार्ग निकला भोग से और सभी मार्ग यही कहते हैं--भोग योग का माध्यम है लेकिन आज योग के नाम को भोग से जोड़ा जा रहा है , आज योग की इतनी चर्चा है जितनी शायद पहले कभी भी नहीं हुई होगी , इसका कारण क्या है ? कारण है मौत का भय । भोग के दो दरवाजे हैं ; एक खुलता है सीधे मौत में और दूसरा खुलता है परम धाम में । भोग ही जिनके लिए परम है वे तो जाते हैं औत के मुह में वह भी स्वयं नहीं जाते उन्हें मौत खीच लेती है और जिनके लिए भोग योग का द्वार बन गया होता है वे स्वेच्छा से शरीर को त्यागते हैं ।
गीता कहता है ---दो प्रकार के लोग हैं --एक आस्तिक लोग हैं जिनका केन्द्र परमात्मा होता है और दूसरे हैं
भोगी लोग जिका केन्द्र मात्र भोग होता है , ये लोग परमात्मा को भी भोग का साधन समझते हैं ।
आज आप दुनिया में नजर डालिए की लोग परमात्मा के स्थानों में किस कदर लम्बी - लम्बी कतारों में
भीखारी की तरह खड़े हैं क्यों ? क्योंकि उनके पास बहुत लम्बी मांग की लीस्ट है जो उनसे स्वयं पूरी नही होती ।
गीता कहता है ---कामना , क्रोध, लोभ, मोह एवं अंहकार को अपनें में बसानें वाला अपनें में परमात्मा
को नहीं बसा सकता ---अब सोचिये उन लोगों के बारे में जो बिचारे तुच्छ दे कर परमात्मा को खरीदना
चाहते है ।
====ॐ-----

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