Thursday, November 19, 2009

ध्यान परमात्मा का द्वार है

मनुष्य के पास तन,मन,बुद्धि और ह्रदय चार रास्ते हैं जिनसे परमात्मा से जुडा जा सकता है ।
तन ध्यान में इन्द्रीओं से मैत्री स्थापित की जाती है ।
मन- बुद्धि ध्यान में विचारों को समझना होता है ।
तन , मन-बुद्धि जब नियोजित हो जाते हैं तब..........
ह्रदय का द्वार खुलता है ।
जब ऐसा होता है तब........
अंहकार पिघलनेंलगता है और प्रीति की धारा ह्रदय में बहनें लगती है ।
अंहकार और प्रीति एक साथ नहीं रह सकते ।
अंहकार अपरा प्रकृत के आठ तत्वों में से एक है जो इन्द्रियों से ह्रदय साधना तक किसी न किसी रूप में रहता है ।
अंहकार की गुरुत्वा शक्ति इतनी मजबूत होती है की यह वैराग्यावस्था तक भोग में वापिस खीच सकता है
अंहकार तिरोहित होनें पर तेरा-मेरा का भाव नहीं उठाता ।
ह्रदय से सहस्त्रार तक की साधना में अंहकार सूक्ष्म रूप में होता है ।
सहस्त्रार चक्र की पकड़ जब समाप्त होती है तब वह योगी गुनातीत योगी होता है जो----------
हर पल परमात्मा से परमात्मा में अपनें को पाता है और प्रशन्न रहता है ।
ध्यान रूपांतरण का माध्यम है इसको मनोरंजन का बिषय न समझें ।
====ॐ=======

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