Thursday, November 19, 2009

गीता श्लोक - 2.11

गीता श्लोक 2.11 में परम श्री कृष्ण कहते हैं-------
तूं शोक करनें लायक लोगों के लिए शोक नहीं करता और प्रज्ञावान की तरह बांते करता है ।
जो हैं तथा जो गुजर गएँ हैं दोनों पर पंडित लोग नहीं सोचते ।
गीता श्लोक 2.2 में परम श्री कृष्ण कहते हैं.............................
असमय में तुझे मोह कैसे हो गया है ? अब यहाँ देखना होगा की गीता श्लोक 2.4 से गीता श्लोक 2.10 तक में अर्जुन ऎसी कौन सी बात कहते हैं जिसके आधार पर परम श्री कृष्ण अर्जुन को श्लोक 2.11 में प्रज्ञावान एवं पंडित शब्दों से संबोधित करते हैं ?
यहाँ अर्जुन कहते हैं-----
मैं भीष्म पितामह एवं द्रोणाचार्य के साथ युद्ध कैसे कर पाउँगा ?
गुरुजनों की ह्त्या करनें से तो उत्तम है भीख मांग कर गुरारा करना ।
मैं तो यह भी नहीं समझ पा रहा हूँ की युद्ध करना उत्तम होगा या न करना उत्तम होगा ।
धर्म-बिषयों से मेरा मन मोहित ही गया है [ गीता श्लोक 2।7 ] , मैं आप का शिष्य हूँ तथा आप की शरण में हूँ, आप कृपया मुझे उचित मार्ग दिखाएँ ।
यहाँ आप नें अर्जुन की बातों को देखा इन बातों में ऐसी कोई बात नहीं है जिस के आधार पर उनको प्रज्ञावान या पंडित कहा जा सके फ़िर श्री कृष्ण क्यों ऐसा कहते हैं ?
अर्जुन का गीता में पहला प्रश्न गीता श्लोक 2.54 के माध्यम से जो है उसमें प्रज्ञावान की पहचान पूछी गयी है ,
यदि अर्जुन प्रज्ञावान होते तो-------
१- वे मोह में क्यों होते ?
२- वे प्रज्ञावान की पहचान क्यों पूछते ?
प्रज्ञावान के लिए आप गीता के श्लोक 2.55 से 2.72 तक को देख सकते हैं , ब्रह्मण , पंडित शब्दों को समझनें के लिए आप देखिये गीता श्लोक 2.46 एवं 18।42 ।
प्रज्ञावान , स्थिर बुद्धि , पंडित , ब्राह्मण , समभाव - ये सभी शब्द एक ब्यक्ति के संबोधन हैं जिसका केन्द्र
परमात्मा होता है ।
मन-योग , बुद्धि- योग , समत्व - योग तथा सम भाव योग वह योग है जिसके माध्यम से इन्द्रीओं से बुद्धि
तक की ऊर्जा को विकार रहित किया जाता है ।
Prof. Einstein कहते हैं-------
जिस बुद्धि से प्रश्न उठता है उस बुद्धि में उस प्रश्न का हल नही होता ।
गीता कहता है ----------
स्थिर बुद्धि प्रश्न रहित होती है और अस्थिर बुद्धि प्रश्न एवं संदेह से भरी होती है , क्या आप को इन दो बातों में कोई अंतर नजर आता है ?अर्जुन मोह में डूब चुके हैं , यह बात श्री कृष्ण को अच्छी तरह से मालूम है । श्री कृष्ण अर्जुन को मोह मुक्त करनें के लिए गीता में नाना प्रकार का प्रयोग करते हैं उनमें से एक प्रयोग गीता श्लोक 2.11 भी है ।
गीता सांख्य - योग की खान है इसमें आप जितनी गहराई में पहुंचेंगे आप को उतना ही अधिक रस मिलेगा ।
जो भाग गया वह भाग गया जो अंदर गया वह पा लिया।

=====ॐ===========

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