Thursday, November 19, 2009

अपरा भक्ति के माध्यम - 3

अपरा - भक्ति माध्यमों में मन्दिर का स्थान अहम् है । भारत में 51 शक्ति पीठ तथा 12 ज्योतिर्लिन्गम प्राचीनतम स्थान हैं जहाँ अपरा - भक्ति से परा में प्रवेश पाना सुगम है। शक्ति - पीठ एवं ज्योतिर्लिन्गम के स्थानों में क्रमशः थानेश्वर तथा काशी का नाम प्रमुख है। थानेश्वर वह प्राचीन स्थान है जिसके सम्बन्ध में गीता कहता है ---धर्म क्षेत्रे कुरु क्षेत्रे .....गीता - श्लोक - 1.1 लेकिन आज लोग इस नाम को भूल चुके हैं । शक्ति-पीठ तथा जोतिर्लिन्गम का सीधा सम्बन्ध शिव से है अतः हम कह सकते हैं की अपरा-भक्ति के माध्यमों में शिव- भक्ति प्राचीनतम है ।
काशी विश्वनाथ का मन्दिर 1669 में औरंगजेब द्वारा बरबाद कर दिया गया था जो 111 वर्षों तक [1780 तक ] सही ढंग से ठीक नहीं हो पाया था लेकिन इंदौर की महारानी अहिल्या बाई जो होलकर परिवार की थी , उन्होंनें इसे ठीक करवाया और पंजाब के राजा रंजित सिंह 1839 में इस पर स्वर्ण-कलश रखवाया था। काशी नरेश का नाम गीता [गीता.सूत्र 1.17 ] में भी है लेकिन उनके परिवार का कोई ब्यक्ति इस मन्दिर में रूचि नहीं दिखाई थी , यह बात सोचनें लायक है ।
यूनान में डेल्फी का मन्दिर जहाँ सूर्य की पूजा की जाती थी वह लगभग 800 BCE का माना जाता है ।
चंदेला राजाओं द्वारा निर्मित आज का खजुराहो जिसको पहले खजूर वाटिका कहते थे लगभग 10-11 AD का है जो तंत्र साधना से सम्बंधित है । मदिरों के इतिहास में अयोध्या का नाम प्रमुख है जहाँ 5-6 AD में
बुद्ध मन्दिर थे और 7-8 AD में हिंदू मन्दिर आगये । जगन्नाथ पुरी , बदरीनाथ तथा केदारनाथ आदि के
मन्दिर लगभग 8AD के आस-पास के हैं। 9AD में पागन [मेमार] की पहाडियों को काट कर बुद्ध मंदिरों
का एक भब्य शहर बनाया गया था जिसको मंगोल लोग नष्ट कर दिए लेकिन अवशेष आज भी उन भक्तों की
याद को ताजी करते हैं।
मन,मन्दिर , मूर्ती और पूजा का गहरा आपसी सम्बन्ध है । मन का अपना विज्ञान है ; यह एक समय में
दो को अपनें में नहीं बिठाता अतः पूजा करनें वाला जब तक यह जानता रहता है की वह पूजा कर रहा है तब तक वह अपरा भक्ति में होता है लेकिन धीरे-धीरे जब वह सरक कर परा में पहुँच जाता है तब वह यह भूल जाता है की वह कहाँ है? वह क्या कर रहा है?
अपरा का काम है परा के द्वार को खोलना और यह तब सम्भव है जब अपरा में परम प्यार की लहर पैदा हो सके ।
=====ॐ=======

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