Wednesday, November 18, 2009

वेद् और गीता

युद्ध क्षेत्र कुरुक्षेत्र से चल कर गीता लोगों के घर-घर में पहुंचा , लोगों को बदलनें के लिए
लेकिन -----------
लोग गीता को ही बदल डाले ।
आज गीता के नाम पर लोगों की भीड़ तो इकट्ठी कर ली जाती हैं पर लोगों को गीता के स्थान पर ------
कहानियाँ सुनाईजाती हैं .....क्या कभी आप इस बात पर सोचे हैं ?
क्या आप जानते हैं ? अलबर्ट आइंस्टाइन , मैक्स प्लैंक और श्रोडिन्गर जैसे महान वैज्ञानिक गीता के
माध्यम से विज्ञान को नई राह दिखायी और भारत में धर्माचार्य लोग कौन सी राह दिखा रहे हैं ?

गीता सूत्र 17.23 में परम कहते हैं.....सृष्टि के प्रारम्भ में वेद्, ब्रह्मण और यज्ञों की रचना मैनें की ।
वैज्ञानिक दृष्टि से वेदों का समय अज्ञात है लेकिन इतना कहा जा सकता हैं की वेदों का सम्बन्ध सिंध नदी -
सभ्यता से जरूर है । गीता एवं महाभारत का समय लगभग 5561-800 B.C. के मध्य माना जा सकता है ।
भारत के मान्य भूतत्व वैज्ञानिक BB.Lall कहते हैं की कुरुक्षेत्र में महाभारत - युद्ध लगभग 830 B.C. के
आस-पास हुयी दिखती है ।
रिग-वेद् जो प्राचीनतम वेद् है उसको लोग 1700-1100 B.C. के आस-पास का मानते हैं । गीता में रिग-वेद् ,
यजुर्वेद एवं साम-वेद् --मात्र तीन वेदों की चर्चा है अर्थात उस समय तक चौथा वेद् नही बना था --यहाँ आप देखे
गीता-सूत्र 9।17, 9।20 ।
गीता परमात्मा की किताब है लेकिन लोगों से दूर क्यों है , कुछ गहरा कारण तो होगा ही--इस बात पर आप
सोंचें । प्रारम्भ में यज्ञों, ब्राह्मण तथा वेदों की रचना को परमात्मा से होनें की बात की गई है जिसके
सन्दर्भ में हम यहाँ कुछ बातों को देख रहे है । गीता-सूत्र 18.42 में ब्राह्मण की परिभाषा दी गई है --यह
सूत्र कहता है की सम-भाव तथा निर्विकार परमात्मा से परमात्मा में स्थित जो होता है , वह ब्राहमण होता है ।
यज्ञों के सम्बन्ध में आप देखें गीता-सूत्र 4.24--4.31 , 4.33 , 9.15 , 17.11--17.13 तक ।
ऐसे कर्म जिनका केन्द्र परमात्मा होता है , यज्ञ कहलाते हैं । गीता के यज्ञ सम्बंधित सुतोंकी चर्चा हम अलग से
करेंगे यहाँ तो उनका सारांश मात्र दिया गया है ।
अब आप वेदों का गीता से क्या सम्बन्ध है को देखिये ---------
यहाँ हमें देखना पडेगा गीता सूत्र --2।42--2.46 , 6. 40 , 6.45 , 9.20--9.22
सूत्र कहते हैं ----
वेदों में भोग का समर्थन किया गया है और भोग - प्राप्ति के उपायों को भी बताया गया है तथा स्वर्ग -प्राप्ति को
परम माना गया है । गीता का उद्धेश्य है परम-पद की प्राप्ति वह भी गुनातीत की स्थिति मिलनें के माध्यम से ।
गीता कहता है की ऐसे लोग जिनकी श्रद्घा गीता में होती है उनका वेदों से सम्बन्ध नाम मात्र का ही होता है ।
गीता कहता है , स्वर्ग उनको मिलता है जिनकी साधना बीच में खंडित हो जाती है , जो वैराग्य तक नही
पहुँच पाते ,उन्हें संसार अपनी तरफ़ भोग में उतार लेता है ।
गीता सांख्य योग की गणित है इसको अपनें मनोरंजन का साधन न बनाएं ।

======ॐ=======

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