Wednesday, November 18, 2009

मन्दिर की बनावट

ध्यान में लीनएक योगी और एक प्राचीन मन्दिर के छाया-चित्रों को देखो------
ऐसा योगी जिसकी शिखा ऊपर की ओर खड़ी हो, वह पद्म-आशन में बैठा हो और ध्यान की गहराई में पहुंचा हो, वह
योगी सजीव मन्दिर ही होता है। मन्दिर के ऊपर आकाश को निहारता ध्वज-दंड योगी की चोटी है, मन्दिर का गुम्बज योगी का सर है, मन्दिर की काया योगी की काया है ।
मन्दिर कोई स्थान या ईमारत नहीं यह तो द्वार है --द्वार कुछ करता नहीं केवल लोगों को देखता रहता है।
मन्दिर-द्वार के बाहर भोग- संसार होता है और अंदर गर्भ-गृह में वह शुन्यता होती है जो सीधे परम को दिखाती है।
मन्दिर के घंटे को क्या आप नें कभीं बजाया है? यदि नहीं तो बजा कर देखना। घंटे से जो ध्वनि गूंजती है उस
ध्वनि में स्वयं को दुबोनें का यत्न करना, हो सकाता है आप को ओंकार की वह परम ध्वनि मिले जिसकी चर्चा संत
जोसेफ बायबिलमें करते हैं और गीता जिसको ॐ, अब्यक्त ध्वनि एक अक्षर कहता है।
मन्दिर का परिक्रमा स्थल
मन्दिर के गर्भ-गृह के चारों तरफ़ परिक्रमा के लिए जगह होती है जहाँ लोग परिक्रमा करनें के बाद गर्भ-गृह में
प्रवेश करते हैं। परिक्रमा का अर्थ है संसार की भाग-दौड़ --संसार की भाग -दौड़ से थाकानें के बाद मनुष्य यह
समझ सकता है की वह क्यों,किसके लिए और कब तक भागता रहेगा।मन्दिर की परिक्रमा हमें बताती है की तुम
यहाँ क्यो आए हो?
मन्दिर का गर्भ-गृह
मन्दिर के गर्भ गृह के मध्य में मूरत हो सकती है या कुछ नहीं भी हो सकता। गर्भ-गृह के मध्य बिन्दु को यदि
ऊपर की ओर ध्वज- दंड से मिलाया जाए तो मन्दिर दो भागों में बिभाजित होता है। गर्भ गृह में मंत्रों का जाप होता
है, जाप से उठनें वाली ध्वनि चारों तरफ़ मन्दिर की दीवारों से टकराकर एक अलग ध्वनि पैदा करती है जो अंदर
की ऊर्जा को रूपांतरित करती है।
गर्भ-गृह में कोई खिड़की नहीं होती। भारत में जब ब्रिटिश आए तब उनके साथ धर्म-प्रचारक भी आए। ब्रिटिश
लोग भारतीय मंदिरों को शरीर के लिए हानिकर बताया लेकिन जब वे मन्दिर के पुजारिओं को देखा तो उनको
बिश्वाश न हुआ की यहाँ रहनें वाले इतनें स्वस्थ होंगे?
मन्दिर संसार एवं परम के मध्य एक रहस्य है जो अपनें इन्द्रीओं से कुछ नहीं ब्यक्त करता लेकिन उसकी चुप्पी वह सब कह देती है जिस को हम सुनना नहीं चाहते।
======ॐ=======

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