Wednesday, November 18, 2009

ध्यान-सूत्र [१]

  1. यहाँ स्वर्ग -प्राप्ति सब का उद्देश्य है,लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्वर्ग से परमात्मा का द्वार नहीं दिखता,मृत्यु-लोक में वैराग - माध्यमसे परमात्मा का द्वार दिखता है।
  2. गुणों से सम्मोहित मन नरक कीओर खीचता है, लेकिन रिक्त मन परमात्मा से जोड़ता है।
  3. शांत-मन दर्पण पर परमात्मा प्रतिबिंबित होता है।
  4. परमात्मा की राह पर भोग पीठ पीछे होता है और अंदर परम शुन्यता होती है।
  5. जब सभी द्वार बंद होजाते हैं, कुछ समय पूर्ण शुन्यता का आलम होता है, आखों से आशू रुकते ही नही तब एक खिड़की खुलती है, जिससे एक किरण आती दिखाती है , वह किरण अंदर ह्रदय में कम्पन पैदा करती है,जो स्वयं परमात्मा से होती है और शरीर के रग-रग में परम-ऊर्जा का संचार कर देती है।
  6. परमात्मा की खोज जब तक खोज है, परमात्मा दूर ही रहता है,लेकिन जब खोज में खोजी खो जाता है तब परमात्मा अवतरित होता है।
  7. द्वैत्य में अद्वैत्य का आभाष परमात्मा से जोड़ता है।
  8. साकार में निराकार की अनुभूति ही परमात्मा की अनभूति है।
  9. परा भक्त के लिए परमात्मा निराकार में नहीं रहता ।
  10. निराकार मायामुक्त जब साकार रूपमें माया से प्रकट होता है तब माया से वह धीरे-धीरे घिरनें लगता है, माया साकार परमात्मा को भी नहीं छोड़ती जो परमात्मा से ही है।
  11. मायामुक्त योगी परम - तुल्य होता है।

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