Wednesday, November 18, 2009

यह संसार एक रणक्षेत्र है.

यह संसार एक रणक्षेत्र है. कोई भूख से लड़ रहा है, कोई सुखमय जीवन में आने वाली बाधाओं से लड़ रहा है, कोई सत्ता को प्राप्त करने के लिए, कोई सत्ता के विस्तार के लिए और कोई सत्ता को बनाये रखने के लिए संघर्षरत है. पराधीन समाज स्वतन्त्रता संग्राम में भाग ले रहा है तो एक सन्त पुनर्जन्म से मुक्ति के लिए अपनी ही वासनाओं से भिड़ रहा है. महाभारत युद्ध के दोनों पक्षकार कौरवों तथा पाण्डवों के वास्तविक पितामह कृष्ण द्वैपायन ही हैं और यह युद्ध भीतरी कलह का परिणाम है. यह युद्ध धर्म और अधर्म के बीच भी है. धर्मराज युधिष्ठिर धर्म के प्रतीक हैं और उनके साथ सत्यता, संतोष, संयम, धैर्य, करुणा, शुचिता और सौम्यता की सेना है. दुरात्मा दुर्योधन अधर्म के प्रतीक हैं और उनके साथ अहंकार, घृणा, द्वेष, असूया, षडयन्त्र, नृशंसता, लालच, अज्ञान, क्रोध, आसक्ति और कपट की सेना है. धर्म सेना का प्रधान नायक अर्जुन का रथ उसके सारथी एवं सखा श्री कृष्ण द्वारा दोनों सेनाओं के बीच में लाया जाता है. यहाँ रथी अर्जुन को आत्मा, सारथी कृष्ण को परमात्मा तथा रथ को देह समझना चाहिए.

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