Wednesday, November 18, 2009

मन्दिर जानें से क्या होगा?

विज्ञानं सभीं सूचनाओं को चार प्रकार से देखता है--ठोस[solid] , तरल[liquid], गैस[gas], और प्लास्मा [plasma] । विज्ञानं कहता है------सभीं स्टार प्लास्मा से बनें हैं, प्लास्मा गैस का ऐसा माध्यमहै जिसमें कुछ आजाद एलेक्ट्रोंस होते हैं और यह गैस इलेक्ट्रो-मग्नेटिक माध्यम से प्रभावित होता है। आप सोच रहे होंगे -----
यह बात यहाँ मन्दिर के सम्बन्ध में क्यों बतायी जा रही है?----तो अब आप इस राज को समझिये।
छोटे बच्चे को उसके अविभावक उसकी उँगलियों को पकड़ कर चलाते हैं और एक दिन वह बच्चा अपनें मां- पिता की उंगली को पकड़ कर उनको चलाता है। ईशा पूर्व में लोग अति सरल थे धर्म के नाम पर सब कुछ उन्हें स्वीकार था । उस समय लोग विज्ञानं शब्द से परिचित भी न थे। उस समय जो परम गणित-विज्ञानं लोगों ने दिया वह तो उनका प्रकृत का अनुभव था। प्रकृत को समझनें के लिए उन्होंने अपने बुद्धि को खोला और फलस्वरूप गणित-विज्ञानं निकला। Prof. Albert Einstein says---Future religion will be a cosmic religion based on experiences and free from all dogma।
प्राचीनतम मन्दिर सिद्ध योगियों के सिद्ध स्थान हैं जहाँ प्लास्मा रूपी चेतना का सघन माध्यम होता है
जिसमें आजाद एलेक्ट्रोंन की तरह चेतन मय कण गतिमान होते हैं जिनको स्थिर होनें के माध्यम की तलाश रहती
है। ये चेतन मय कण संदेश बाहक कण होते हैं जो योगियों के अनुभव को देना चाहते हैं जिससे ज्ञान के दीपक को
जलाये रखा जा सके। मन्दिर एक ऐसा स्थान है जहाँ कामुक, कामना तृप्ति के लिए भ्रमित लोग और सत्य के
खोजी भी होते हैं। प्रति दिन मन्दिर जानें से एक दिन आही जाता है जब हम अन जानें में वहाँ के उर्जा-क्षेत्र से पूरी
तरह चार्ज हो जाते हैं और वहाँ गति शील योगियों के चेतनमय संदेश वाहक कण हम में प्रवेश कर जाते हैं और हम रूपांतरित हो जाते हैं। यदि हमारा रूपांतरण होश में होता है तब हम बुद्ध बन जाते हैं और यदि रूपांतरण बेहोशी में हुआ तो हम पागल भी हो सकते हैं। मन्दिर जाना अच्छा है --आप जायें लेकिन इसको मनोरंजन का साधन न बनाये। मन्दिर प्रयोगशाला है जहाँ वे जाते हैं जो किसी भी कीमत पर सत्य को पाना चाहते हैं।
=======ॐ=======

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