Wednesday, November 18, 2009

त्याग को समझो

त्याग स्व का कृत्य नही , यह साधना-यात्रा का फल है
गीता-कर्म योग का सारांश है ---------------------
चाह एवं अंहकार रहित कर्म , कर्म-योग है ।
भोग से भोग में हम हैं और जिवधारिओंमें मनुष्य एक मात्र ऐसा जिव है जो भोग को समझ कर आगे की यात्रा
कर सकता है जिसको योग कहते हैं । योग का अर्थ है वह जो परम - प्रीतिकी लहर दिल में उठाये ।
जब परम प्रीति की लहर उठती है तब मन-बुद्धि में शब्द एवं चाह से परिपूर्ण भाव नही होते ।
चाह तथा अंहकार के साथ परम-प्रीति की लहर नही उठ सकती - परम-प्रीति की लहर एक बवंडर है जिसमें
दिशा तो होती है लेकिन उस दिशा को वही समझता है जो उसमें होता है , बाहरी ब्यक्ति उस की दिशा को नही
समझ सकता ।
राग, आसक्ति, कामना, क्रोध, संकल्प, विकल्प, लोभ, भय , मोह एवं अंहकार बंधन हैं इनको छोड़ना इतना
आसान नही , ये स्वतः छूट जाते हैं तब जब भोग-कर्म योग कर्म में बदल जाते हैं और ऐसा तब होता है जब
शरीर के कण-कण में परम की ऊर्जा भर जाती है ।
कर्म-योग की साधना जैसे-जैसे आगे बढती है वैसे-वैसे भोग तत्व स्वतः समाप्त होनें लगते हैं , उनकी पकड़
ढीली पड़नें लगाती है , मैं- तूं का भेद मिट जाता है ।
हम आम खाते हैं पर यह नहीं सोचते की यह आम क्या है , क्या कभी आप इस बात पर सोचे हैं ?
आम जो आज हमें उपलब्ध है वह एक बीज की लम्बी यात्रा का फल है ।
एक बीज धीरे-धीरे एक पेंड बनता है , जब पेंड तैयार होता है तब प्रकृत उसपर फल देती है , वह फल सभी
तरह के जीवों को आकर्षित करता है , उसमें एक अलग तरह की खुशबूं आजाती है जो अन्य जीवों को
आकर्षित करती है । आम के बीज की ही तरह एक साधक जब साधना में आगे बढ़ता है तब प्रकृत उसमें
भी फल खिलाती है , फल के रूप में उसे वैराग मिलता है , वैरागी के शरीर से भी एक खुशबूं निकलती है जो
भोगी एवं योगी दोनें को अपनी तरफ़ खीचती है । वैरागी से भोगी अपनें भोग -प्राप्ति की कामना के कारण
आकर्षित होता है और योगी अपनें योग को और आगे बढानें के लिए आकर्षित होता है ।
गुनातीत योगी एक पके आम जैसा होता है , वह जहाँ भी होता है उसके चारों तरफ़ एक ऐसी खुशबूं होती है जो .......
लोगों को अपनी तरफ़ खीच लेती है ।
हमें अपनें को देखना है , आप ज़रा सोचना क्या वह जिसको हम त्यागी कहतेहैं , उसमें मैं का भाव नही होता,
क्या उसमें सूक्ष्म अंहकार की छाया नही होती ? होती है और जब तक कर्म में मैं एवं अहंकार है , वह कर्म
त्याग हो नही सकता ।
त्याग - भाव का आना शुभ लक्षण है बश इतना होश बना कर रखना है की यह मैं नही कर रहा , मुझसे
हो रहा है , मैं तो एक माध्यम हूँ ।
=====ॐ=======

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