Wednesday, November 18, 2009

जो विनिवृत काम तथा द्वन्दों से मुक्त है, वह शाश्वत पद को प्राप्त होता है.

जो प्रकाश, प्रवृत्ति तथा मोह के उपस्थित होने पर न तो उनसे घृणा करता है और न लुप्त हो जाने पर उनकी इच्छा करता है, जो भौतिक गुणों की इन समस्त प्रतिक्रियाओं से निश्छल तथा अविचलित रहता है और यह जान कर कि केवल प्रकृति के गुण ही क्रियाशील हैं उदासीन और स्थितप्रज्ञ बना रहता है, और सुख- दु:ख को एक समान मानता है, जो मिट्टी के ढेले, पत्थर एवं स्वर्ण के टुकड़े को समान दृष्टि से देखता है, जो अनुकूल तथा प्रतिकूल के प्रति समान बना रहता है, जो धीर है और प्रशंसा तथा बुराई, मान तथा अपमान में समान भाव से रहता है,जो शत्रु तथा मित्र के साथ समान व्यवहार करता है और जिसने भौतिक कार्यों का परित्याग कर दिया है, ऐसे व्यक्ति को गुणों से अतीत कहते हैं. जो समस्त परिस्थितियों में अविचलित भाव से पूर्ण भक्ति में प्रवृत्त होता है, वह तुरन्त ही प्रकृति के गुणों को लाँघ जाता है और इस प्रकार ब्रह्म के स्तर तक पहुँच जाता है. जो झूठी प्रतिष्ठा, मोह तथा कुंसगति से मुक्त हैं, जो परमात्मा के शाश्वत तत्त्व को समझते हैं, जो विनिवृत्त काम हैं, जो सुख-दुख के द्वन्द्व से मुक्त हैं, जो मोहरहित हैं वे शाश्वत पद को प्राप्त होते हैं. इस संसार में जीव अपनी देहात्मबुद्धि को एक शरीर से दूसरे में उसी तरह ले जाता है, जिस तरह वायु सुगन्ध को ले जाता है. इस प्रकार वह एक शरीर धारण करता है और फिर इसे त्याग कर दूसरा शरीर धारण करता है.

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