Wednesday, November 18, 2009

मन-सूत्र

== मन एक माध्यम है जो भोग से तब जुड़ता है जब इस पर गुणों का प्रभाव होता है और निर्मल मन
परमात्मा से मिलाताहै
== विकार रहित मन परमात्मा है [गीता-10.22]
== विकार रहित श्रद्धा से परिपूर्ण मन-दर्पण पर परमात्मा प्रतिबिंबित हूट है
== मन अपरा प्रकृत का एक तत्त्व है[गीता-7.4,7.5 ]
== गुणों केप्रभाव में जब मन की उर्जा इन्द्रिओंसे जुड़ती है तब भोग-भाव उठते हैं और जब मन-उर्जा
चेतना से मिलाती है तब परमात्मा की झलक मिलती है
== विचारों को हर पल समझाना ही मन-ध्यान है
== स्मृति में खोया मन गुणों से मुक्त नहीं हो सकता और स्मृति रहित मन परमात्मा को दिखता है
== साधना-विधिओं की सीमा मन तक सीमित है आगे की यात्रा होश के साथ स्वयं होती है
== मन यातोस्व पर होता है या पर पर होता है--पर पर केंद्रित मन गुणों के प्रभाव में होता है और
स्व पर केंद्रित मन परमात्मा की झलक दिलाता है
== आत्मा केंद्रित योगी का मन विकार रहित होता है
== ज्ञान से आत्मा का पता चलता है
== ज्ञान योग सिद्धि का फल है
== योग-सिद्धि आसक्ति रहित कर्म से मिलाती है
== मन की रिक्तता के साथ परमात्मा होता है ज्योही मन की रिक्तता समाप्त होती है परमात्मा से
सम्बन्ध टूट जाता है
== विकारों का प्रभाव बुद्धि तक ही होता है , बुद्धि से आगे चेतना,आत्मा एवं परमात्मा पर विकारों
प्रभाव नहीं पङता
ऊपर की बैटन को यदि आप गीता में देखना चाहते हैं तो देखिये इन सूत्रों को ------------
2.14 2.41 2.42----2.44,2.60--2.63,2.67
3.4 3.34 3.37 3.40---43
4.38
5.22 5.23 5.26
6.4 6.24 6.26--30 6.33---6.36
7.4---7.7 7.10 7.12 7.13
8.3 8.6
10.20 10.2
12.3 12.4
13.2 13.5
15.3 15.7 15.8 15.9
16.21
18.38 18.49 18.50

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