Wednesday, November 18, 2009

देवताओं व पितरों की पूजा छोड़कर परमात्मा में ध्यान लगाने से ही स्थायी शांति मिलती है.

यह ज्ञान सब विद्याओं का राजा है, जो समस्त रहस्यों में सर्वाधिक गोपनीय है. यह परम शुद्ध है और चूँकि यह आत्मा की प्रत्येक अनुभूति कराने वाला है, अत: यह धर्म का सिद्धान्त है. यह अविनाशी है और अत्यन्त सुखपूर्वक सम्पन्न किया जाता है. जो लोग भक्ति में श्रद्धा नहीं रखते, वे ईश्वर को प्राप्त नहीं कर पाते. अत: वे इस भौतिक जगत् में जन्म-मृत्यु के मार्ग पर वापस आते रहते हैं. जिस प्रकार सर्वत्र प्रवाहमान प्रबल वायु सदैव आकाश में स्थित रहती है, उसी प्रकार समस्त प्राणी परमेश्वर में स्थित रहते हैं. यह भौतिक प्रकृति परमात्मा की शक्तियों में से एक है और उसकी अध्यक्षता में कार्य करती है, जिससे सारे चर तथा अचर प्राणी उत्पन्न होते हैं. इसके शासन में यह जगत् बारम्बार सृजित और विनष्ट होता रहता है. परमेश्वर ही इस ब्रह्माण्ड का पिता, माता, आश्रय तथा पितामह है. वह ही लक्ष्य, पालनकर्ता, स्वामी, साक्षी, धाम, शरणस्थली तथा अत्यन्त प्रिय मित्र है. वह सृष्टि तथा प्रलय, सबका आधार, आश्रय तथा अविनाशी बीज भी है. वह ही ताप प्रदान करता है और वर्षा को रोकता तथा लाता है. वह अमरत्व है और साक्षात् मृत्यु भी है. वह ही सत् तथा असत् है. जो लोग अन्य देवताओं के भक्त हैं और उनकी श्रद्धापूर्वक पूजा करते हैं, वास्तव में वे भी ईश्वर की ही पूजा करते हैं, किन्तु वे यह त्रुटिपूर्ण ढंग से करते हैं. जो देवताओं की पूजा करते हैं, वे देवताओं को, जो पितरों की पूजा करते हैं, वे पितरों को, जो भूतों की पूजा करते हैं वे भूतों को और जो परमात्मा की पूजा करते हैं वे परमात्मा को प्राप्त करते हैं. परमात्मा न तो किसी से द्वेष करता है, न ही किसी के साथ पक्षपात करता है. वह सभी के लिए समभाव है. किन्तु जिनकी अनुरक्ति परमात्मा में है वे भक्त परमात्मा में ही स्थित हैं. अनुचित कर्म करने वाला भी यदि भक्ति में रत रहता है और अपने संकल्प में अडिग रहता है तो शीघ्र ही धर्माचरण करने वाला बन जाता है और स्थायी शान्ति को प्राप्त होता है.

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